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सरसों की खेती का सरल तरीका सीख कर किसान भाई अपने खेतों से सरसों की अच्छी पैदावार ले सकते हैं।

आज की पोस्ट में हम जानकारी | jankari देंगे कि सरसों की खेती कैसे करें, sarso ki kheti, mustard farming, Sarso ki kheti kab kare, सरसों की खेती का तरीका, bhumi में सरसों की बुवाई का समय, सरसों का साग, मक्के की रोटी सरसों का साग आदि की विस्तार से जानकारी देंगे।


भारत में रवि की प्रमुख फसलों में सरसों का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। सरसों एक प्रमुख तिलहनी फसल है, सरसों का भारत की कृषि और अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान है। सरसों को लाही भी कहा जाता है।

 वर्तमान समय में भारत में सरसों की खेती अत्यंत ही लोकप्रिय होती जा रही है। भारत सरकार भी सरसों की खेती को बहुत बढ़ावा दे रही है, इसकी प्रमुख वजह भारत में खाद्य तेलों का भारी मात्रा में आयात करना है। भारत सरकार की पूरी कोशिश है कि भारत खाद्य तेलों में भी आत्मनिर्भर बने, जिसके कारण bhumi में तिलहनी फसलों जैसे सरसों के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए भरसक प्रयास किए जा रहे हैं, जिसका परिणाम भी सामने आ रहा है तथा प्रतिवर्ष भारत तिलहनी फसलों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ता जा रहा है।

 सरसों के उत्पादन में किसान भाइयों को  मुनाफा दूसरी फसलों की अपेक्षा कुछ अधिक प्राप्त हो रहा है, जिसके कारण कृषक भाइयों का रुझान भी तिलहनी फसलों के उत्पादन के प्रति बढ़ता ही जा रहा है। Sarson ki kheti के क्षेत्र | भूमि में भी भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है।



                                                                     (Sarso ki kheti image)


सरसों बोने का सही समय कौन सा है | सरसों की बुवाई का समय | Sarso ki kheti kab kare 


भारत में पीली सरसों की बुवाई का समय शरद ऋतु का आरंभ माना जाता है, क्योंकि सरसों के अच्छे उत्पादन के लिए ठंडा मौसम होना जरूरी होता है। सरसों के लिए सामान्यता 16 से 26 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। आमतौर पर भारत में किसान अक्टूबर माह से सरसों की बुवाई शुरू कर देते हैं, अगर सही समय पर सरसों की खेती | sarso ki kheti की जाए तो किसान बंधु अच्छा उत्पादन पा सकते हैं।


सरसों की खेती का तरीका | सरसों की खेती कैसे करें


सरसों की खेती के लिए किसान को सर्वप्रथम खेत को अच्छी तरह से जोत कर समतल कर लेना चाहिए। खेत की जुताई के बाद अच्छी तरह से पाटल लगाकर मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए, तदुपरांत खेत में सरसों का बीज डाल कर बहुत हल्की हैरो करके पटेला लगा देना चाहिए, ध्यान देना चाहिए कि सरसो के बीज बोने के समय खेत में मिट्टी में हल्की नमी होने जरूरी होती है, जिससे सरसों अच्छी उगती है। 

सरसों की फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी व कुछ रेतीली मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। 

सरसों की फसल मे कीट पतंगे से बचाव के लिए आवश्यकतानुसार वैज्ञानिक विधि से कीटनाशक का छिड़काव किया जा सकता है। वैसे किसानों को अब फसलों को जैविक विधि से उगाने को प्राथमिकता देनी चाहिए। 

काली सरसों की बुवाई का समय सितंबर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के दूसरे सप्ताह तक अच्छा माना जाता है।





खाद उर्वरक प्रबंधन 

सरसों की खेती के लिए उर्वरक भी बहुत जरूरी है । क्योंकि उर्वरक से ही पौधों को ताकत मिलती है। अच्छी फसल लेने के लिए सर्वप्रथम प्रति हेक्टर खेत में 10 से 13 टन गोबर की खाद,  200 किलो  सुपर फास्फेट, 50 किलो पोटाश बुवाई से पूर्व खेत में मिलाने है। फसल उगने के बाद 200 किलो यूरिया दो से तीन बार किस्तों में, प्रति हेक्टर सरसों की खेती फसल में डालना है, जिससे पैदावार अच्छी हो सकती है।
                                               

स्टॉक मार्केट में निवेशकों के कामयाब होने का फंडा 

बीज दर

सरसों की बुवाई के लिए सामान्यता शुष्क क्षेत्रों में 4.5 किलोग्राम से 5.5 किलोग्राम तथा सिंचित क्षेत्र में 3.5 किलोग्राम से 4.5 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टर पर्याप्त रहती है।
 

सरसों में कितनी बार पानी देना चाहिए | Sarson mein kitni bar Pani Dena chahie

सरसों की खेती में पानी की जरूरत कम पड़ती है। सरसों की फसल को आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए तथा ध्यान रखना चाहिए की पानी ज्यादा देर तक उसकी जड़ों में ना रुके, वरना सरसों की फसल खराब हो सकती है। सरसों की फसल को प्रथम सिंचाई की जरूरत 30 से 40 दिन बाद और द्वितीय सिंचाई जब फसल में फूल और दाने आ जाते हैं, तब पड़ती है।

1 एकड़ में कितना सरसों होना चाहिए

वर्तमान समय में भारत मैं कई कृषि विश्वविद्यालय ने अपने गहरी रिसर्च के बाद सरसों के  कई ने उन्नत बीज तैयार की है। जिन से सरसों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। सामान्य तौर पर सरसों का उत्पादन प्रति एकड़ 8 से 10 कुंटल तक हो जाता है। फसल का उत्पादन बहुत हद तक जलवायु और खेत की मिट्टी के ऊपर भी निर्भर करता है।

1 बीघा में कितने कुंटल निकलता है

एक बीघा खेत में सामान्य तौर पर डेढ़ कुंटल तक सरसों की पैदावार हो जाती है, जोकि खेत की मिट्टी और जलवायु के ऊपर निर्भर करती है।


किसानों के बीच प्रचलित किस्से कहानियां

किसानों के बीच में खेती करते हुए किस्से कहानियां भी व्यापक तौर पर सुनाए जाते हैं। यह कहानियां दादा दादी की कहानी, नाना नानी की कहानी, परी की कहानी, आसमानी परिया, भूतिया दादा, प्रभु श्री राम की कहानी आदि भी सुनाई जाते हैं। आमतौर पर वृद्ध किसान और मजदूर अपने संग साथियों और बच्चों को यह कहानियां बहुत जोर से चाव से सुनाते हैं इसके अतिरिक्त khatarnak bhoot, bhutiya dada, bhoot khatarnak, khatarnak bhutni, bhalu dada, bhoot dada, dant wala bhoot, khet khaliyan आदि की कहानियां भी सुनाते हैं। veh khet में इन कहानियों को खेती का कार्य करते हुए बड़े चाव से सुनाते हैं। भारत के किसान भाइयों के बीच में सरसों की खेती अत्यंत लोकप्रिय है, तथा प्रतिवर्ष सरसों के बुवाई रकबे में बढ़ोतरी हो रही है।

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जब स्कूल टाइम में पिक्चर हॉल में छात्रों तथा टीचर्स का आमना सामना हुआ।

जीवन के सफर | journey of life  में इंसान को कदम - कदम पर जिंदगी के नए-नए रूप देखने को मिल जाते हैं। कुछ घटनाएं जाने-अनजाने में ऐसे घटित हो जाती हैं, जोकि इंसान के मन मस्तिष्क पर बहुत ही गहराई तक अंकित हो जाती है। अपनी biography में आज हम एक सच्ची घटना के बाबत विस्तार से बताएंगे।

 मेरे साथ भी जीवन में एक बार ऐसी घटना घटित हुई जिसको याद कर आज भी होठों पर बरबस ही हंसी आ जाती है तथा अपने किशोरावस्था का रंगीन जमाना याद आ जाता है। कितने सुंदर दिन थे, हम लोग कल्पना लोक में जीते थे तथा दिन में ही रंगीन सपने अक्सर देखा करते थेे। वह उम्र ऐसी थी जब बच्चे में परिपक्वता ना के बराबर होती है, जहां पर 4 बच्चों ने मिलकर किसी काम के लिए हामी भर दी, तो सभी बच्चेे उस कार्य को करने के लिए उतावले हो जाते हैं। उनमें ज्यादा सोचने की शक्ति नहीं होती, ना ही वह किसी की बात सुनना चाहते हैं।

 ऐसेे ही एक घटना मेरे साथ घटी, जिसको याद करके अब भी होठों पर हंसी आ जाती है।

जब पिक्चर हॉल में छात्रों का अध्यापकों से हुआ आमना सामना



यह बात उन दिनों की है जब मैं नौवीं क्लास में पढ़ता था। हमारा स्कूल घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर था, क्योंकि हम लोग एक गांव में रहते थे और गांव से स्कूल जाने के लिए पहले हमें लगभग ढाई किलो मीटर पैदल चलना पड़ता था और उसके बाद हमें बस का इंतजार करना पड़ता था। बस आने पर हम उससे बस स्टॉप पर उतर जाते थे, और वहां से पैदल ही स्कूल में चले जाते थे।

 यह वाकया जब हुआ उस समय वर्षा ऋतु चल रही थी। एक दिन रात को भारी बरसात हुई और सुबह हमारे मम्मी पापा ने मना किया कि बेटा आज स्कूल मत जाओ, आज जैसा मौसम है, पूरे दिन ही भारी बरसात हो सकती हैं। मगर हम भी अपने समय के महानतम ज़िद्दी थे। हमने कहा अगर हम स्कूल नहीं गए तो हमारी आज की पढ़ाई खराब हो जाएगी, लिहाजा हम सभी की बातों को दरकिनार करते हुए सिर पर बरसाती डालकर पैदल ही एक वीर योद्धा की तरह स्कूल की तरफ चल दिए।

  धुन के पक्के हम तमाम परेशानियों को झेलते हुए सफलतापूर्वक अपने ठिकाने यानी कि विद्यालय में पहुंच गए। उस दिन विद्यालय में ना के बराबर बच्चे आए हुए थे। प्रिंसिपल महोदय ने अन्य अध्यापकों के साथ गहन विचार विमर्श किया तथा स्कूल में उस दिन अत्यधिक बरसात होने के कारण तथा छात्रों के ना पहुंचने के कारण छुट्टी घोषित कर दी गई। 

अब मेरे सामने एक नया धर्म संकट पैदा हो गया कि अब क्या किया जाए? 

अगर अभी घर गए तो घर में भी पिटाई होना  सुनिश्चित है, क्योंकि उन्होंने भी हमें आज स्कूल जाने के लिए मना किया था।

 उलझनों में फंसा हुआ हमारा  कोमल मन यह सोचने को मजबूर हो गया की जीवन में आई इस बड़ी  विपत्ति से कैसे पार पाया जाए?

 मन ही मन गहन मंथन करने के बाद मेरे दिमाग में एक बिजली कौंध गई, मेरे दिमाग में एक शैतानी आईडिया आ चुका था, जिससे सांप भी मर जाता और लाठी भी ना टूटे वाली कहावत चरितार्थ हो सकती थीं।


अपने ऊपर आई  इस अनायास विपत्ति से निकलने का मेरे कोमल मन में एक शैतानी आइडिया आ चुका था। मैंने फैसला किया कि आज पिक्चर हॉल में पिक्चर ही देख ली जाए, जेब में इतने पैसे तो थे की पिक्चर की टिकट आ जाएगी तथा खाने के लिए भी कुछ पकोड़े आदि का भी इंतजाम हो जाएगा। अपने दिमाग में आए इस  धांसू विचार को अमली जामा पहनाते हुए  मैंने स्कूल में पहुंचे अपने दोस्तों से इस अनमोल प्रस्ताव को पेश किया। अपनी तरह के इस अनोखे प्रस्ताव को पाकर मेरे दोस्तों का मन गार्डन गार्डन हो गया, और हमारे   कदम पिक्चर हॉल की तरफ चल पड़े।

 पिक्चर हॉल मेरे स्कूल से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर था, उस समय भी बरसात हो रही थी। मैं पूरे आत्मविश्वास से अपने ऊपर बरसाती डालकर अपने दोस्तों के साथ बरसात में ही पिक्चर हॉल की तरफ अत्यंत ही तेजी से चल पड़ा। उस समय हमारे कदमों में इतनी तेजी थी कि अगर हम ओलंपियाड में भाग लेते  तो हमें गोल्ड मेडल मिल सकता था। 

भागते भागते हम लोग पिक्चर हाल में पहुंंचे तो पिक्चर का समय हो चुका था। जल्दी ही पिक्चर की टिकट खरीदी और अत्यंत तेजी से picture   hall   के गेट की तरफ भागे ताकि पिक्चर  शुरू ना हो जाए।

हमे मालूम नहीं था की पिक्चर हॉल में एक  बड़ी आपदा हमारे ऊपर आने वाली है,   जोकि हमारे सभी उमंग तथा उल्लास पर पानी फेर देगी।

जैसे ही हमने पिक्चर हॉल मैं प्रवेश किया तो हम सभी दोस्तों पर अनायास ही बिजली टूट पड़ी ।  हमे दिन में तारे नजर आ गए । हमारी आंखोंं के  सामने अकल्पनीय दृश्य था, क्योंकि हमारे स्कूल के सभी अध्यापक भी स्कूल की छुट्टी करने के बाद पिक्चर देखने आ गए थे। एक क्षण के लिए सभी अध्यापक तथा हम सभी छात्र हक्के बक्के रह गए। 

कुछ क्षणों तक तो अध्यापकों को भी यह समझ नहीं आया की ऐसी विषम परिस्थितियों में क्या करना चाहिए?  

कुछ समय तक उलझन में रहने के बाद हमारे अध्यापक  कुछ संभले तथा उन्हें अपनी गरिमा तथा प्रतिष्ठा का ध्यान आया, उन्होंने सभी बच्चों को एक लाइन में खड़ा कर कागज निकालकर सबके नाम नोट कर लिए और सब ने अलग-अलग सीट पर बैठ कर पिक्चर देखी।



 लेकिन हमारा सारा उत्साह तथा उमंग काफूर हो चुकी थी। मरे हुए दिल से हमने फिल्म देखी और पॉपकॉर्न भी खाए।पिक्चर खत्म होने के बाद हम सबसे पहले  पिक्चर हाल से बाहर निकले ताकि अध्यापकों की नजर में ना आने पाए।


सुबह प्रार्थना के वक्त प्रिंसिपल द्वारा हमें सम्मानित किया गया।


अगले दिन सुबह डरते डरते सभी बच्चे विद्यालय पहुंचे तथा तथा बैल बजने  पर सभी बच्चे प्रार्थना करने के लिए लाइन में लग गए। हमारा डर थोड़ा कम हो गया था, क्योंकि अभी तक किसी भी अध्यापक ने हमें कुछ नहीं कहा था। मगर हमें मालूम नहीं था की यह तूफान आने से पहले की खामोशी हैै। 

प्रार्थना खत्म होने केेे बाद एक अध्यापक ने जेब मेंं से वह कागज निकाला, जिसमें उन्होंने पिक्चर हाल में पिक्चर देखनेेे  वाले बच्चों के नाम नोट किए थे। हर बच्चेे को नाम से बुलाकर उन्हें अलग लाइन में खड़ा कर दिया गया।

 अगली कार्रवाई के लिए पूरी जिम्मेदारी हमारेे Principal महोदय ने निभाईं, उनकेे हाथ में एक छड़ी थी,  उन्होंने छड़ी का भरपूर उपयोग बच्चों पर किया, और अंत में इसका परिणाम यह निकला की बच्चों की भी  दुआएं रंग लाई तथा छड़ी टूट गई


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प्रेमपत्र पहुंचाने के लिए मुझे फेरीवाला का रूप धरकर 150 किलोमीटर साइकिल यात्रा करनी पड़ी।

अपनी Biography में आज की पोस्ट जीवन के सफर में जानकारी दूंगा, कि किस तरह मुझे अपने सच्चे मित्र की मोहब्बत की खातिर फेरीवाला का रूप धारण करके लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा साइकिल से करनी पड़ी। उक्त जिंदगी के सफर में पहाड़ों की यात्रा भी शामिल थी।

दोस्तों,
          जैसा कि मैं अपनी पूर्व की कई पोस्ट में अपने बारे में विस्तार से बता चुका हूं, कि किस तरह मुझे कम उम्र में ही अपने घर से  लगभग 250 किलोमीटर दूर यमुनानगर में  जाकर अकेले ही दुकान करनी पड़ी थी। उस वक्त मेरी उम्र लगभग 15 वर्ष थी। जिंदगी के तमाम झंझावात को झेलते हुए मेरी जिंदगी शैने शैने आगे बढ़ रही थी। इस दौरान मेरे कुछ हम उम्र दोस्त भी बन गए थे। एक दोस्त उस दौरान आईटीआई में मैकेनिकल ड्राफ्ट्समैन का डिप्लोमा कर चुका था तथा उस समय वह करनाल के पास इंद्री नामक जगह पर स्थित पॉलिटेक्निक में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। वह मेरा बहुत ही घनिष्ट मित्र था। हमें एक दूसरे की सभी बातें पता होती थी तथा हम अपने सुख-दुख आपस में बांटते थे ।  वह वहां इंद्री में पॉलिटेक्निक में हॉस्टल / छात्रावास में रहता था तथा छुट्टी वाले दिन वापस आ जाता था। उसका घर मेरी दुकान से लगभग 500 मीटर की दूरी पर था। रात को लगभग 10:00 बजे हम दुकान बंद करके घूमने निकल जाया करते थे।

 जैसे की जवानी में हर एक को एक रोग लग जाता है जिसे आमतौर पर प्यार का रोग यानि मोहब्बत भी कहते हैं। मोहब्बत की कसम यह एक बहुत ही भयानक रोग है। जिसमें इंसान का जीवन ही बदल जाता है। मेरा वह दोस्त जिसका सही नाम तो उसकी मोहब्बत की गोपनीयता बनाए रखने के लिए मैं नहीं बताऊंगा। मगर आप उसका नाम जसवीर मान ले।

 जसवीर के बराबर वाले घर में ही उनकी कोई रिश्तेदार कुंवारी लड़की जो कि लगभग 17 वर्ष की थी, रहती थी। वह उनकी रिश्तेदारी में ही आती थी। ना जाने कब और कैसे उन दोनों को आपस में प्यार हो गया और प्यार का बुखार उनके सर पर चढ़कर बोलने लगा। मेरे दोस्त का यह राज मेरे अलावा कोई भी नहीं जानता था। कुछ समय बाद वह लड़की वापस अपने घर चली गई, उसका घर यमुनानगर से लगभग 75 किलोमीटर दूर हिमाचल में था तथा उसका गांव पहाड़ी क्षेत्र में आता था।


जिगरी दोस्त का प्रेम पत्र पहुंचने के लिए मुझे फेरी वाले का रूप धारण करना पड़ा


मेरे जिगरी दोस्त जसवीर की मोहब्बत उससे बिछड़ कर दूर हो गई थी और वह अपने मोहब्बत में बेइंतेहा तड़प रहा था। हद से ज्यादा दीवाना हो गया था, समझ नहीं पा रहा था कि वह उसे कैसे मिले?

 कैसे अपना संदेश अपना प्रेम पत्र उस तक पहुंचाये? 

उसकी अधीनता और बेचैनी को देखते हुए मेरा मन भी अत्यंत ही व्याकुल हो जाता था। कमबख्त जवानी चीज ही ऐसी होती है की अच्छे भले इंसान की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। जवानी के जोश में दोस्त की dosti की खातिर मैंने अपने दोस्त का प्रेम पत्र उसकी प्रेमिका तक पहुंचने का बीड़ा उठाया और मैंने अपनी दोस्ती निभाते हुए एक योजना बनाकर फेरीवाला का रूप धरकर साइकिल से दोस्त की प्रेमिका के गांव में जाने का दृढ़ निश्चय कर लिया।


फेरीवाला का रूप धरकर दोस्त की मोहब्बत की खातिर मैंने अपना जिंदगी का सफर साइकिल से शुरू किया।



मैंने दोस्त को उसकी प्रेमिका के लिए पत्र लिखने को कहा। उससे पत्र लिखवा कर रात को ही मैंने दो बैग समान अपनी दुकान का सामान लेकर पैक किया। उस सामान में  कंधे, नेल पॉलिश, बिंदी आदि मनियारी का समान था, जो की मेरी दुकान का ही था। मैंने कुर्ता पजामा पहने और सुबह 4:00 बजे ही अपनी दुकान जो की यमुनानगर में थी, से साइकिल से ही हिमाचल के लिए यात्रा शुरू कर दी।

 उपरोक्त यात्रा एक साइड की लगभग 75 किलोमीटर थी। जब मैं वहां से विदा हुआ तो मेरे दोस्त ने भीगी आंखों से मुझे अपने गले लगा लिया। दोनों को यह अच्छी तरह से पता था कि अगर गलती से भी कोई चूक हो गई तो जबरदस्त पिटाई से कोई भी मुझे बचा नहीं पाएगा। मगर दोस्त की दोस्ती की खातिर उस दिन मुझे वह भी मंजूर था। मेरी साइकिल पर लगभग 50 किलो वजन लदा हुआ था और मैं साइकिल से रवाना हो गया। गर्मियों के दिन थे, मुझे खूब पसीना आ रहा था। लगभग 20 किलोमीटर की पहाड़ों पर भी चढ़ाई थी, मगर मेरे फौलादी हौसले आज हर कीमत पर अपना सफर कामयाबी से जारी रखे थे। मैं लगभग 12:00 बजे दोस्त की प्रेमिका के घर के गांव में पहुंच गया था।


दोस्त की प्रेमिका के घर में पहुंचकर खाना खाया।

मैं गांव में पहुंचकर अब लोगों के घरों में जाकर आवाज देकर सामान बेचने लगा। हकीकत में मैं टोह ले रहा था की मेरे दोस्त की प्रेमिका का घर कौन सा है। फिर मैं किसी के घर में थोड़ी देर चारपाई पर जानबूझकर बैठ गया, और घर की औरतों से बातें करने लगा। बातों ही बातों में मैंने जानबूझकर बताया कि मैं इतनी दूर से वहां से यमुनानगर से कि उसे जगह से आया हूं। तब वह बोली कि हमारे पड़ोस के घर से भी एक लड़की वहीं पर रहती थी, अभी कुछ दिन पहले ही आई है। मैंने उनका नाम पूछा तो वही नाम निकला। अब मेरा उत्साह अपने चरम पर पहुंच गया था तथा मुझे यह  यह महसूस हुआ कि मैं अपनी मंजिल पर पहुंच चुका हूं। मैंने उनसे कहा कि उनको तो मैं अच्छी तरह से जानता हूं, मैं उनके घर भी हो गया आता हूं। मैं तुरंत अपनी साइकिल लेकर उनके बताए घर की तरफ रवाना हो गया।

 सीधा ही उनके घर पर गया, घर पर मेरी किस्मत ने मेरा साथ दिया, वहां पर वह लड़की और उसकी मां दोनों ही मौजूद थी। मैंने उनको तुरंत ही अभिवादन किया और बताया कि मैं वहां से आया हूं। यह सुनकर ही वह दोनों खुश हो गई और बोली की यह तुम्हारा घर भी है। मैंने बताया कि मैं उन्हें जानता हूं। उन्होंने पूरे आदर से मुझे चारपाई पर बिठाया और लड़की की मम्मी ने मुझसे कहा की हम खाना खिलाए बिना आपको नहीं जाने देंगे। मैं भी रुकने का बहाना ढूंढ रहा था और मुझे  मुंह मांगी मुराद मिल गई थी। वह लड़की मेरे लिए पानी लेकर आई तो मैंने धीरे से अपने दोस्त  का भेजा हुआ प्रेम पत्र उसको दिया और बोला कि यह जसवीर ने दिया है। उसने फुर्ती से वह पत्र अपनी मुट्ठी में दबा लिया तथा अंदर कमरे में चली गई। थोड़ी देर में उसकी मम्मी मेरे लिए खाना बना कर ले आई और बैठकर मुझे से काफी बातें करने लगी। बहुत ही अपनेपन का अहसास हो रहा था। थोड़ी देर बाद ही उसके मम्मी बर्तन लेकर चली गई और मेरे दोस्त की प्रेमिका मेरे लिए चाय बना कर ले आई थी। इस बीच उसने कमरे में एक प्रेम पत्र मेरे दोस्त के लिए भी लिख दिया था। उसने चुपके से वह प्रेम पत्र मुझे दे दिया, मैंने तुरंत ही संभाल कर अपने जेब में रख लिया। दोनों के चेहरे पर ही बड़े सुकून के और विजेता के भाव थे, वह बहुत प्रसन्न थी। अब मेरा मकसद पूरा हो चुका था और मैं तुरंत ही वापसी के लिए बेकरार हो गया था। मैं तुरंत खड़ा हुआ और अभिवादन करके वापसी के लिए निकल पड़ा।

 वापसी में मैं लगभग 9:00 बजे रात को 150 किलोमीटर साइकिल का सफर करके अपनी दुकान पर पहुंचा। मेरा वह दोस्त बेकरारी से मेरे वापिस आने का इंतजार कर रहा था। मेरा शरीर थककर चूर हो चुका था। मैंने उसको उसकी प्रेमिका का पत्र सौंप दिया। पत्र खुला हुआ था, मगर मोहब्बत की कसम मैंने दोस्त की दोस्ती की खातिर उसको नहीं पड़ा था। उसने खुशी से मुझे बाहों में भर लिया और मेरे कंधे पर अपना सिर टिका दिया, उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। दोनों को ही अपार खुशी थी, जहां उसको यह खुशी थी कि उसका प्रेम पत्र उसकी प्रेमिका तक पहुंच गया और उसका जवाब भी आ गया और मेरा दोस्त भी उससे मिल आया, वही मुझे इस बात की खुशी और फखर था की मैं भी अपने दोस्त की मोहब्बत में उसके किसी काम आया और उसकी प्रेमिका से मिलने का सौभाग्य मुझे मिला।

 वक्त ने हम दोस्तों को अलग कर दिया। आज मुझे उसे दोस्त से मिले हुए भी कई वर्ष हो गए हैं, मेरे पास उसे दोस्त का फोन नंबर भी नहीं है। मगर वह यादें वह दोस्ती आज भी सीने में जिंदा है और जब तक जीवन रहेगा, dosti की मधुर यादें सीने में रहेगी।

: आज की यह पोस्ट मेरे जिगरी दोस्त जसवीर को समर्पित।



 

jivan ke Safar mein Vaishno mata ke darshan ka saubhagya prapt hua

अपनी Biography की आज की पोस्ट में मैं जीवन के सफर | journey of life में माता वैष्णो देवी की प्रथम यात्रा के बाबत सच्ची व वास्तविक जानकारी दूंगा, और यात्रा संबंधित कुछ महत्वपूर्ण अनुभव आप सभी के साथ सांझा करूंगा। मेरे यह जिंदगी के अनुभव माँ वैष्णो देवी के दर्शन के लिये जाने वाले माँ के  भक्तों के लिये उपयोगी साबित हो सकते हैं। मां भगवती की असीम कृपा से मुझे भी कई बार माता वैष्णो देवी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।


वैष्णो देवी से संबंधित कुछ अहम जानकारी

maa vaishno devi mandir भारत के जम्मू और कश्मीर में स्थित है। माता वैष्णो देवी के दर्शन करने हेतु इस मंदिर में जाने हेतु यात्रा कटरा शहर से शुरू होती है। माता वैष्णो देवी का मंदिर त्रिकुटा नामक पहाड़ पर स्थित है। कटरा से वैष्णो देवी की चढ़ाई लगभग 12 से 13 किलोमीटर तक की है। इस चढ़ाई में लगभग 3200 से अधिक सीढ़ी हैं, और आमतौर पर इस यात्रा को पूरा करने के लिए 3 से 5 घंटे तक लग जाते हैं, जोकि हर व्यक्ति की चाल और शारीरिक क्षमता के आधार पर अलग अलग हो सकता है। हिंदू धर्म मान्यता के अनुसार माता वैष्णो देवी को माता त्रिकुटा, माता वैष्णवी, मां आदिशक्ति दुर्गा स्वरूप, शेरा वाली आदि के नाम से भी बुलाया जाता है। 

वैष्णो देवी मंदिर में आदि स्वरूप महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली पिंडी रूप में त्रेता युग से विराजमान है। वैष्णो देवी माता स्वयं अपने निराकार रूप में यहां पर विराजमान हैं। हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों के हिसाब से माता वैष्णो देवी का मंदिर 108 शक्तिपीठ में भी शामिल है। यह मंदिर उत्तर भारत के सबसे ज्यादा पूजनीय हिंदुओं के स्थानों में से एक है। प्रतिवर्ष लाखों तीर्थयात्री इस मंदिर में आकर मां भगवती के दर्शन करते हैं। 

माता वैष्णो देवी के मंदिर के देखरेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल नामक न्यास द्वारा की जाती है। ऐसा माना जाता है की माता वैष्णो देवी के प्रहरी पवन पुत्र हनुमान जी हैं और हनुमान के साथ ही भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले भैरव बाबा भी हैं। उत्तर भारत में ही माता वैष्णो देवी के अलावा सहारनपुर की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित माता शाकुंभरी देवी सबसे प्राचीन सिद्ध पीठ है। 

ऐसा माना जाता है कि दुनिया का कोई भी khatarnak bhoot या khatarnak bhutni माता वैष्णो देवी के भक्तों का बाल भी बांका नहीं कर सकते।



दोस्तों , 
           जैसे कि मैं Funda of life में पूर्व में ही अपनी विभिन्न पोस्टों में अपने बारे में काफी विस्तार से बता चुका हूं कि किस तरह मुझे छोटी उम्र में ही घर से काफी दूर जाकर अकेले ही दुकान करनी पड़ी और जिंदगी के तमाम उतार-चढ़ाव और झंझावात को झेलते हुए मेरी जिंदगी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। हमने बचपन से ही अपने घर परिवार में तथा रिश्तेदारों से माता वैष्णो देवी के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था, तथा मन में दबी हुई यह एक इच्छा थी की जीवन में एक बार मुझे जम्मू कश्मीर में स्थित माता वैष्णो देवी के दरबार में माथा टेकने और उनका आशीर्वाद लेने अवश्य ही जाना है।

जीवन के सफर में माता वैष्णो देवी | mata vaishno devi के दर्शन हेतु मेरी प्रथम यात्रा

यमुनानगर में अकेले रहने के दौरान मुझे ना जाने क्यों एक दिन माता वैष्णो देवी के दरबार में जाने का ख्याल आया और  Vaishno Devi | वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए मेरा मन बहुत ही उतावला और बेचैन हो गया । मेरे मन से बार-बार आवाज आ रही थी चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है, और मैंने तुरंत ही जम्मू कश्मीर में मां भगवती के दरबार में माथा टेकने हेतु जाने का फैसला कर लिया।

वैष्णो देवी मंदिर | vaishno devi mandir जाने का फैसला कर लेने के बाद मैंने अपने कई दोस्तों को वहां साथ जाने के लिए कहा, मगर दोस्तों की आर्थिक परिस्थितियां कुछ ऐसी थी कि उस समय वह माता वैष्णो के मंदिर में दर्शन करने हेतु जाने में असमर्थ थे।

maa vaishno devi mandir जाने हेतु टिकट का रिजर्वेशन करवाने यमुनानगर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया 

जिंदगी के सफर में Shri mata vaishno devi के दर्शन हेतु मेरे साथ जाने के लिए जब कोई भी तैयार नहीं हुआ, तब भी मैंने दृढ़ संकल्प व फौलादी हौसला दिखाते हुए माता वैष्णो देवी जी के मंदिर में अकेले ही जाने का फैसला कर लिया, उस वक्त मेरी उम्र लगभग 20 वर्ष थी। मैं यमुनानगर में रेलवे स्टेशन पर जम्मू कश्मीर में जाने के लिए रिजर्वेशन करवाने पहुंचा, तो पता चला की ट्रेन में लगभग 1 महीने तक की रिजर्वेशन फुल है, तथा 1 महीने बाद ही रिजर्वेशन की तारीख का टिकट मिल सकता है। मैं बहुत दुविधा में पड़ गया, क्योंकि मेरे लिए 1 महीने तक इंतजार करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था, वहां जाने की बेचैनी हद से ज्यादा हो रही थी। 

आखिर में मैंने बिना रिजर्वेशन ही ट्रेन के द्वारा   vaishno devi temple jammu kashmir  जम्मू तक का सफर तय करने का फैसला कर लिया, और आगामी यात्रा की तैयारी करने हेतु उत्साह से भरकर रेलवे स्टेशन से अपने घर वापिस आ गया।


 सफर हेतु सफर बैग तैयार किए

वैष्णो देवी मंदिर के बारे में बचपन से ही अपने मम्मी पापा, रिश्तेदारों और मिलने जुलने वाले लोगों से बहुत कुछ सुन रखा था, तथा यह भी  सुना था की vaishno devi weather बहुत ही अनिश्चित होता है तथा temperature in vaishno devi काफी कम होता है, तथा मां वैष्णो देवी के भवन पर बहुत ठंड होती है, क्योंकि वह बहुत ऊंचे पहाड़ों पर स्थित है।

 मैंने सफर हेतु तीन सफर बैग तैयार किए। एक काफी बड़ा बैग था, दूसरा मीडियम साइज का  और तीसरा बैग कुछ छोटा था। मैंने कंबल, चादर, स्वेटर, मफलर, टोपी, दस्ताने, चप्पल की जोड़ी, 2 जोड़ी जूते व  बहुत सारे कपड़े, तेल की शीशी, पाउडर का डिब्बा, दर्पण और कुछ आवश्यक सामग्री और दवाई आदि इसमें  भर लिए, क्योंकि मुझे यह जानकारी नहीं थी कि इस सफर में कितने दिन लग जाएंगे, और इसमें मुझे कितने दिन का जिंदगी का सफर करना पड़ेगा। मेरे तीनों सफर बैग में लगभग 50 किलो वजन हो गया था।


वैष्णो देवी दर्शन हेतु मेरी यात्रा का प्रारम्भ 

मैं दूसरे दिन शाम को लगभग 5:00 बजे अपनी दुकान से तीनों ही सफर बैग लेकर माता वैष्णो देवी की यात्रा हेतु रवाना हो गया। दुकान से रेलवे स्टेशन जाने हेतु मैंने किराए पर ऑटो ले लिया था। लगभग 6:00 बजे के आसपास मैं यमुनानगर रेलवे स्टेशन के अंदर टिकट लेकर प्रवेश कर गया था। वहां से ट्रेन का टाइम लगभग 6:30 के आसपास था।

 मेरे पास साधारण क्लास का टिकट था, परंतु मैं ट्रेन में  रिजर्वेशन वाले डिब्बे में चढ़ गया। मैंने टीटी से प्रार्थना की कि मुझे कोई सीट दिलवा दे, मगर टीटी ने बताया कोई भी सीट खाली नहीं है और मुझे जनरल डिब्बे में जाना पड़ेगा, थोड़ा प्रयत्न और प्रार्थना करने पर और परिस्थिति बताने पर टीटी ने मुझे उसी रिजर्वेशन के डिब्बे में रहने की परमिशन दे दी।

 सफर बहुत लंबा था और किसी की सीट पर पूरी रात बैठा नहीं जा सकता था। इसलिए मैंने डिब्बे के फर्श पर अखबार बिछाई और उस पर चादर बिछा कर आराम से सो गया और मेरा जम्मू तक का सफर शुरू हो गया। दूसरे दिन सुबह लगभग 11:00 बजे के आसपास ट्रेन जम्मू पहुंच गई और मैं भी ट्रेन से उतर कर जम्मू स्टेशन पर नहा धोकर, पेस्ट करके चाय पी कर स्टेशन से बाहर आ गया।

वैष्णो देवी मंदिर | vaishno devi mandir जाने के लिए जम्मू से कटरा तक का सफर

मुझे पहले यह जानकारी थी की माता वैष्णो देवी मंदिर जम्मू में स्थित है, मगर जम्मू पहुंचकर मुझे इस बात की जानकारी हुई की अभी हमें जम्मू से कटरा तक की यात्रा करनी पड़ेगी और यह यात्रा बस से या ऑटो से हो सकती है। कटरा तो वैष्णो देवी वय ऑटो किराया और बस के किराए में फर्क होता है। मैंने जम्मू से कटरा तक की यात्रा बस से करने का फैसला किया और जम्मू स्टेशन से बाहर कुछ दूरी से मैंने कटरा जाने के लिए एक बस पकड़ ली और मेरा कटरा का सफर शुरू हो गया। सफर के दौरान लगभग 1 घंटे बाद बस एक ढाबे पर जाकर रुक गई वहां पर मैंने खाना खाया और चाय भी पी। लगभग आधा घंटा रुकने के बाद बस फिर से कटरा के लिए रवाना हो गई। कटरा बस स्टॉप पर पहुंचकर मैं अपने सफर बैग के साथ बस स्टॉप से बाहर आ गया।

वैष्णो देवी में रहने की व्यवस्था

मुझे घर से निकले हुए लगभग 24 घंटे हो चुके थे और मुझे विश्राम की आवश्यकता महसूस हुई, मैंने जम्मू रेलवे स्टेशन पर ही इस बाबत जानकारी जुटाई थी और मिली हुई जानकारी के अनुसार मुझे किसी धर्मशाला या होटल में रुकना था। मैं कटरा बस स्टेशन से बाहर आकर धीरे-धीरे वैष्णो देवी मार्ग पर चलने लगा और थोड़ी थोड़ी देर बाद आने जाने वाले लोगों से पूछता,
 कि रुकने के लिए यहां पर धर्मशाला कहां है?

मुझे बार-बार एक ही जवाब मिलता कि यहां से थोड़ी दुरी  पर धर्मशाला या होटल मिल जाएगा। धीरे धीरे चलते हुए मुझे वैष्णो देवी जाने वाले मार्ग पर अंततः यह ज्ञात हुआ की धर्मशाला और होटल बहुत पीछे रह चुके हैं। मैं यात्रा में vaishno devi yatra parchi in hindi पहले ही कटवा चुका था, क्योंकि यात्रा के लिए यह पर्ची बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी और मां वैष्णो देवी के दर्शन | vaishno mata ke darshan के समय यह पर्ची दिखानी पड़ती थी। 
अब मेरी हालत यह थी की मैं बिना किसी विश्राम के लगभग 50 किलो वजन वाले 3 सफर बैग के साथ यात्रा कर रहा था। कटरा से वैष्णो देवी मंदिर की चढ़ाई वैसे भी लगभग 13 किलोमीटर है और यह बहुत कठिन चढ़ाई है, जोकि आमतौर पर दर्शनार्थी खाली हाथ ही चढ़ना पसंद करते हैं। मगर मेरी हालत बिल्कुल विपरीत थी। मगर वैष्णो देवी मंदिर जाने का उत्साह और कुछ जवानी का जोश ने सारी परेशानियों को भुला दिया और मैं बिना थके बिना रुके अपनी मंजिल की तरफ बढ़ता चला गया, बढ़ता ही चला गया।


T series कंपनी के मालिक स्वर्गीय श्री गुलशन कुमार द्वारा चलने वाले भंडारे में भोजन व प्रसाद ग्रहण किया

कटरा से Mata Vaishno Devi Mandir की यात्रा में चढ़ाई चढ़ते हुए मार्ग में टी सीरीज कंपनी के मालिक और माता वैष्णो देवी के सच्चे भक्त  स्वर्गीय श्री गुलशन कुमार द्वारा लगातार 24 घंटे चलने वाले भंडारे में भोजन ग्रहण और प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। संपूर्ण भोजन और हलवे का प्रसाद शुद्ध देसी घी में बना हुआ था। बहुत ही स्वादिष्ट था, जिसका स्वाद मैं आज भी भुला नहीं पाया। भोजन का प्रसाद ग्रहण करने के बाद मैं पुनः अपने आगे के सफर में रवाना हो गया।


माता अर्धकुमारी के भवन पर मैंने रात्रि विश्राम किया

माता वैष्णो देवी मार्ग में सभी भक्त माता के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। जय माता दी, जय माता दी करदा जा पौड़ी पौड़ी चढ़ता जा आदि कई तरह के माता के जयकारे लगाए जा रहे थे। मेरे होठों से भी लगातार माता के जयकारे निकल रहे थे और दिल दिमाग में अद्भुत सी शांति महसूस हो रही थी।

Mata Vaishno Devi mandir में जानें के लिए मार्ग में चढ़ाई चढ़ते हुए मुझे कई घंटे हो चुके थे, और मैं बुरी तरह से थक गया था। अब मैं मार्ग में माता अर्धकुमारी के भवन पर पहुंच गया था। मैंने रात्रि को वहीं पर रुकने का फैसला किया। मैंने अपने तीनों सफर बैग क्लॉक रूम में जमा करवाएं तथा वही भवन से कंबल लेकर जमीन पर बिछाकर तथा ऊपर ओढ़ कर सो गया। उस समय जबरदस्त ठंड थी तथा हाथ पैर ठंड से बुरी तरह से कांप रहे थे, सफर की थकान से मेरा जिस्म बुरी तरह से टूट रहा था। सोने के बाद मुझे कुछ भी होश नहीं रहा। दूसरे दिन सुबह मेरी नींद खुली और मैंने वही भवन में ही स्नान किया तथा चाय पी कर नाश्ता कर पुनः अपने यात्रा मार्ग पर आगे बढ़ गया।


माता वैष्णो देवी के दर्शन

मैं शाम के समय माता के भवन से लगभग 1 किलोमीटर दूर था, वहां पर मैं रुका व नहा धोकर तरोताजा हुआ। उस दिन वहां पर जबरदस्त भीड़ थी जो जल्द से जल्द वैष्णो देवी के दर्शन के लिए उतावली थी । थोड़ा आगे चलकर भवन से पहले मैंने क्लॉक रूम में अपने सफर बैग को जमा कर दिया और माता वैष्णो देवी की गुफा में जाने के लिए लाइन में लग गया।

 हजारों की भीड़ लाइन में पहले से ही लगी हुई थी। कई घंटों बाद लगभग रात्रि के 12:00 बजे vaishno devi gufa से जाकर मुझे माता वैष्णो देवी के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वैष्णो देवी गुफा में प्रवेश करने से पूर्व ही वहां पर मौजूद पुलिस वालों ने हमारी बैल्ट और पर्स निकालकर साइड में रख दिए थे, क्योंकि वैष्णो माता के दर्शन हेतु  यह चीजें ले जाना माता के भवन में अलाउड नहीं था।

मां वैष्णो देवी के दर्शन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो गया। देवी दर्शन से दिल दिमाग में एक अद्भुत शांति सी महसूस हुई और ऐसा लगा जैसे आज मुझे जीवन में बहुत कुछ नया प्राप्त हुआ है।

 माता के दर्शन करने के बाद मैंने लगभग 2 घंटे वहां पर विश्राम किया और माता के भवन से वापस अपने सफर बैग के साथ जम्मू आने के लिए निकल पड़ा। वहां पर मुझे पता चला था की भैरव मंदिर भी बहुत ऊंचाई पर स्थित है, तथा भक्त लोग माता रानी का दर्शन करने के बाद में भैरव मंदिर बाबा भैरवनाथ का दर्शन करने हेतु जरूर जाते हैं, इच्छा तो मेरी भी बहुत थी, मगर मुझे बहुत भारी थकान हो चुकी थी और मेरे पास सफर बैग का वजन भी बहुत ज्यादा था, जिसके कारण मैं चाह कर भी बाबा भैरव नाथ के दर्शन करने नहीं जा पाया।

 अब मेरा पूरा ध्यान घर वापसी पर था। यात्रा के मार्ग में वापसी का सफर मैंने बिना रुके पूरा किया। रास्ते में प्रसाद हेतु बहुत से अखरोट, बदाम और कन्याओं हेतु देने हेतु कुछ समान ले लिया था। कटरा से बस से मैं जम्मू रेलवे स्टेशन पर लगभग 1:00 बजे तक पहुंच गया था।


वापसी की ट्रेन निरस्त होने के कारण मुझे पूरी रात खड़ा होकर वापसी का सफर करना पड़ा

जब मैं यमुनानगर से यात्रा पूरी करके जम्मू रेलवे स्टेशन पर पहुंचा था, तो मैंने वापसी हेतु अपने टिकट का रिजर्वेशन करवा दिया था और ट्रेन का टाइम शाम  लगभग 7:00 बजे के आसपास था। यात्रा पूरी करके दोपहर लगभग 1:00 बजे जम्मू जंक्शन पर पहुंचा तो मुझे बेहद थकान और नींद आ रही थी। मैं वही रेलवे जंक्शन पर कंबल ओढ़ कर सो गया, बहुत गहरी नींद आई और शाम को लगभग 6:30 बजे के आसपास बहुत ज्यादा शोरगुल से मेरी नींद खुल गई।

 मैंने घड़ी देखी और ट्रेन की बाबत पता किया। कुछ देर बाद पता चला कि जिस ट्रेन से मैंने वापसी का टिकट बुक कराया था, किन्ही  कारणों से वह ट्रेन आज निरस्त कर दी गई है। मेरी हालत खराब हो गई थी और मन भी बहुत विचलित हो गया था। मैंने रेलवे इंक्वायरी काउंटर में जाकर किसी अन्य ट्रेन के बारे में पता किया, तो ज्ञात हुआ 1 घंटे बाद एक दूसरी ट्रेन भी जाएगी। मैंने दूसरी ट्रेन में ही आने का फैसला किया, क्योंकि अब दो ट्रेन की सवारी एक ट्रेन में ही हो गई थी, जिसके कारण बहुत ही जबरदस्त भीड़ उस ट्रेन में हो गई थी।

 हालत ऐसे हो गए की खड़ा होना भी बहुत मुश्किल हो रहा था, जबरदस्त धक्का-मुक्की ट्रेन के अंदर चल रही थी। पूरी रात जैसे तैसे करके मैं खड़े हुए ही यात्रा करता रहा। दूसरे दिन सुबह मैं लगभग 11 बजे यमुनानगर पहुंच गया और लगभग 12:00 बजे अपनी दुकान पर जाकर पीछे कमरे में सो गया।

 इस तरह मेरे यात्रा का समापन हुआ।

जय माता दी

यह मेरी माता वैष्णो देवी की पहली यात्रा थी, जिसके अनुभव का लाभ मुझे माता वैष्णो देवी की आगामी यात्राओं में मिला।


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sehat ke liye muli khane ke fayde | सेहत के लिए मूली खाने के फायदे

आज की पोस्ट में हम जानकारी | Jankari दे रहे हैं की मानव शरीर की अच्छी सेहत के लिए मूली खाने के फायदे कौन-कौन से हैं, तथा मूली में हमें कौन-कौन से विटामिंस और स्वास्थ्यवर्धक चीजें मिलती हैं, और मूली का सेवन कैसे किया जा सकता है।


👉 मूली की खेती | radish cultivation 

👉 मूली खाने के फायदे | radish benefits 

👉 मूली खाने के नुकसान 

👉 मूली का पराठा

👉 मूली का अचार कैसे बनता है

👉 शुगर के मरीज को मूली खाने चाहिए या नहीं

👉 मूली को इंग्लिश में क्या बोलते हैं

👉 बवासीर में मूली के फायदे

👉 मूली जड़ है या तना


मूली की खेती | मूली की खेती कैसे करें

मूली की खेती के लिए 1 सितंबर से लेकर 15 नवंबर तक का समय सबसे अच्छा होता है। वैसे किसान भाई वर्षा ऋतु के समाप्त होने के बाद कभी भी मूली की फसल को बो सकते हैं मूली ठंड में अधिक पैदावार देती है।radish seeds को खेत में बोने से पहले किसान भाई खेत की जुताई करके खेत को भुरभुरा बना ले।

 जुताई करने के लिए किसान भाई देशी हल, कल्टीवेटर या हैरो का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। जुताई करने के बाद 200 से 300 कुंटल तक सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर भूमि में अच्छी तरह से मिला लें, जिससे मूली की पैदावार अच्छी होगी। white radish की खेती करना किसान भाई ज्यादा पसंद करते हैं।




मूली खाने के फायदे | radish benefits 

मूली खाने के फायदे व्यक्ति को कई तरह से मिलते हैं। मूली  बहुत ही हेल्दी रूट वेजिटेबल में शामिल है। मूली में मुख्य रूप से पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, नियासिन, कई तरह के विटामिंस, राइबोफ्लेविन आदि प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। मूली में विटामिन सी भी पाया जाता है, जो कि एक एंटी ऑक्साइड होता है, जो फ्री रेडिकल्स से हमारे शरीर की रक्षा करता है। बढ़ती उम्र और अनहेल्दी लाइफस्टाइल के कारण होने वाली कोशिकाओं की क्षति को भी विटामिन सी रोकने का काम करता है।  

white radish benefits बहुत अधिक होते हैं। मूली व्यक्ति की इम्यूनिटी पावर को बूस्ट करती है और ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल भी करती है। मूली के सेवन से कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है, क्योंकि मुली में कुछ एंटी कैंसर प्रॉपर्टी भी होती है, जोकि कैंसर के खतरे को कम करने में सहायक होती है। इसके अतिरिक्त मूली में पोटेशियम भी पाया जाता है और पोटेशियम ब्लड प्रेशर के स्तर को कंट्रोल करने में सहायक होता है। मूली खाने से व्यक्ति का heart भी स्वस्थ रहता है। मूली  उच्च ब्लड प्रेशर को कम करने में भी सहायक होती है। मूली के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।

मूली खाने के नुकसान

मूली एक स्वास्थ्यवर्धक सब्जी है जोकि व्यक्ति के शरीर को कई तरह की समस्याओं से निजात दिलाती है। वहीं पर मूली के फायदे के साथ-साथ कुछ नुकसान भी होते हैं। ऐसा माना जाता है कि ज्यादा मूली के सेवन से मूली में मौजूद गोइट्रोजेनिक पदार्थ व्यक्ति के थायराइड हार्मोन के उत्पादन में रुकावट डाल सकते हैं और ज्यादा मुली के इस्तेमाल से थायराइड हार्मोन का स्तर असंतुलित होने की संभावना बढ़ जाती है। विशेष तौर पर थायराइड की समस्या से पीड़ित लोगों के अंदर। थायराइड से पीड़ित व्यक्तियों को डॉक्टर की सलाह से ही अधिक मूली का सेवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अगर किसी  व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब है या उसको एलर्जी संबंधित कोई बीमारी है, तो मूली के सेवन से  पूर्व डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।


Muli ka paratha | मूली का पराठा 

मूली का पराठा बहुत ही स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक होता है। भारत में तो मूली का पराठा लोग बहुत ही चाव से खाते हैं। आमतौर पर मूली का पराठा व्यक्ति दही के साथ खाना ज्यादा पसंद करते हैं।


मूली का अचार कैसे बनता है | pickled radish 

ताजी और अच्छी मूली को लेकर उसको पानी में अच्छी तरह से धोकर फिर उसको छीलकर छोटे टुकड़े बना देना चाहिए। फिर उसके ऊपर आवश्यकतानुसार हल्दी, नमक, मिर्च, राई को डालकर अच्छी तरह से मिलाकर कुछ नींबू और उसका रस भी डालकर किसी बर्तन में या जार में रख देना चाहिए। कुछ दिनों में ही मूली का अचार खाने के लिए तैयार हो जाता है। ध्यान देने की बात यह है की संपूर्ण विश्व में अलग-अलग जगह, अलग-अलग समाज में मूली का अचार बनाने की कई विधि है। हर व्यक्ति अपने इच्छा अनुसार मूली का अचार अलग-अलग  विधि से बना सकता है और चाहे तो किसी एक्सपर्ट की भी मदद भी ले सकता है।


शुगर के मरीज को मूली खाने चाहिए या नहीं

डायबिटीज के मरीजों को मूली खाना स्वास्थ्यवर्धक होता है। मूली में फाइबर की मात्रा काफी अधिक पाई जाती है, फाइबर मनुष्य के शरीर में स्थित कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद प्रदान करता है, इसके अतिरिक्त ब्लड शुगर के स्तर को कंट्रोल करती है। डायबिटीज होने पर हर व्यक्ति को खान-पान का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है और आमतौर पर डायबिटीज के मरीज को सही जानकारी ना मिलने के कारण अक्सर गलत खानपान कर लेते हैं, जिसके कारण उनका शुगर लेवल काफी बढ़ जाता है। बार-बार शुगर लेवल बनना कई शारीरिक समस्याओं को जन्म दे देता है।

 जिन व्यक्तियों को डायबिटीज है उनको इसका विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है। शुगर के मरीजों को मूली का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए। ठंड के मौसम में मूली सब्जी बाजार में बहुतायत से और सस्ती मिलती है।


मूली को इंग्लिश में क्या बोलते हैं | spelling of radish 

 मूली को अंग्रेजी में radish बोलते हैं।

मूली के पत्ते खाने के फायदे | radish leaves benefits 





मूली का ऊपरी हिस्सा खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। मूली के पत्तों का स्वास्थ्य के लिए लाभकारी प्रभाव होता है, मूली के पत्तों से साग और भुजी बनाकर खाई जा सकती है।

मूली जड़ है या तना | radish is root or stem 

मूली एक जड़ | root है।

सफेद मूली को कैसे खा सकते हैं।




सफेद बोली को कच्चा सलाद के रूप में खाया जा सकता है। इसके साथ ही सफेद मूली का पराठा, सफेद मूली का अचार, सफेद मूली का सूप, सफेद मूली को सैंडविच में डालकर भी प्रयोग किया जा सकता है।


 मूली खाने से गैस की समस्या

यह कथन सही है कि बोली खाने से व्यक्ति को पेट में गैस कुछ अधिक बनती है इसलिए जिन व्यक्तियों को जो व्यक्ति पेट की गैस से पीड़ित है ऐसे व्यक्तियों को मूली के सेवन से पूर्व डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।


रात को मूली खाने के नुकसान

मूली की सब्जी का सेवन करने से पेट में कुछ गैस भी बनती है। जिन व्यक्तियों को गैस की या पाचन की समस्या हो, ऐसे व्यक्तियों को मूली खाने से थोड़ा बचना चाहिए। मगर रात में मूली खाने से नुकसान के बाबत अभी कोई उचित वैज्ञानिक शोध हमारे सामने नहीं आया है। यही कहा जा सकता है की इस बारे में व्यक्तियों के बीच में मतभेद हैं।

भारत के किसान भाइयों के बीच में मूली की खेती अत्यंत लोकप्रिय है। भारतवासी मूली के पराठे बड़े चाव से खाते हैं। इसके अतिरिक्त मूली को सलाद तथा अचार के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।

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भारत सरकार ने चीनी निर्यात पर पाबंदी एक वर्ष के लिए और बड़ाई | government of India ne suger ke export per rok ki avdhi 1 vrsh ke liye aur badhai


भारत सरकार ने एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए देश से होने वाले चीनी के निर्यात की अवधि 1 वर्ष के लिए और बढ़ा दी है। अब चीनी के निर्यात पर पाबंदी 31 अक्टूबर 2023 तक लागू रहेगी। भारत सरकार द्वारा यह महत्वपूर्ण निर्णय देश के घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए किया गया है। ध्यान रहे विगत कुछ समय में ही देश में चीनी की कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई है, इसके कारण भारत सरकार के भी कान खड़े हो गए थे तथा महंगाई पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। इससे पूर्व भारत सरकार द्वारा गेहूं और चावल पर भी  निर्यात में कुछ पाबंदियां लगाई गई थी। भारत सरकार के विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा ज़ारी की गई अधिसूचना के अनुसार कच्ची रिफाइंड तथा सफेद चीनी के निर्यात पर लगी पाबंदी को 31 अक्टूबर 2023 या अगले आदेश तक के लिए बढ़ा दिया गया है तथा इससे संबंधित शेष सभी शर्तें पूर्ववत रहेगी।  निर्यात संबंधित यह पाबंदियां अमेरिका तथा यूरोपीय संघ को सीएक्सएल वह टीआरक्यू शुल्क रियायत कोटे के तहत निर्यात पर लागू नहीं होंगी। Department of agriculture द्वारा भारत में कृषि के विकास के लिए काफी कार्य किए जा रहेे हैं। इसके अतिरिक्त भारत में जैविक खेती | organic agriculture को भी सरकार द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है।


Sugercane | गन्ने से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां




वर्तमान समय में भारत विश्व का सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक देश है तथा विश्व का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश भी है। भारत में एक हेक्टर भूमि | bhumi में लगभग 500 कुंटल से 800 कुंटल तक गन्ने की पैदावार होती है। भारत में बड़ी संख्या में सैकड़ों की तादाद में चीनी मिले हैं, जिनसे चीनी का उत्पादन होता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के साथ-साथ वर्तमान वित्तीय वर्ष में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश भी रहा है। भारत में उत्तर प्रदेश राज्य से देश के कुल होने वाले चीनी के निर्यात में 20 से 25 परसेंट तक की भागीदारी होती है और उत्तर प्रदेश देश के चीनी निर्यात में सबसे ज्यादा योगदान देता है। उत्तर प्रदेश राज्य में लगभग 120 चीनी मिले हैं। पिछले उत्पादन सत्र में इस राज्य की bhumi में पैदा हुए गन्ने से लगभग  102 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।


 गन्ने से पैदा होने वाले उत्पाद | which product made by sugarcane

गन्ने से कई उत्पाद | product तैयार किए जाते हैं। गन्ने के रस से चीनी बनती है। गन्ने के रस से ही खांड का उत्पाद होता है। गन्ने के रस से ही ही गुड़ तथा शक्कर का उत्पाद होता है। इसके अतिरिक्त गन्ने | sugercane से ही सिरका का निर्माण किया जाता है। देश में पेट्रोल में मिलाने के लिए वर्तमान समय में एथेनॉल को मिक्स किया जा रहा है। एथनॉल का निर्माण भी गन्ने के द्वारा ही होता है। इसके अतिरिक्त गन्ने की खोई से गत्ता तथा कागज का निर्माण भी किया जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि गन्ना की भूमिका अत्यंत ही महत्वपूर्ण है तथा लाखों लोग इसकी खेती से रोजगार पाते हैं। Agriculture Industries  द्वारा भी लाखों लोगों को रोजगार दिया जा रहा है।


गन्ने के मानव शरीर में फायदे | benefits of sugarcane to human body

गन्ने में सुक्रोज की मात्रा ज्यादा पाई जाती है जो कि मानव शरीर के लिए बहुत उपयोगी है तथा इसके द्वारा मानव शरीर को जल्दी ही ऊर्जा मिल जाती है। गन्ने के सेवन से व्यक्ति को थकान और सुस्ती दूर हो जाती है। गन्ना मानव शरीर में  ग्लूकोज की मात्रा को नार्मल करता है। जिससे शुगर के लेवल को रिस्टोर करने में मदद मिलती है।