Hindi Dada: जिनका मिलना नहीं होता मुकद्दर में, उनसे मोहब्बत कसम से कमाल की होती है | Jinka milna nahi hota mukaddar mein,unse mohabbat kasam se kamaal ki hoti hai

Journey of life | जीवन के सफ़र  में हमने अक्सर लैला मजनू, हीर रांझा, शीरी फरिहाद | Laila Majnu, Heer Ranjha, Sheri farihad की stories तथा उनकी Love Story के बारे में सुना है। इनके प्रेम कहानियों पर कई फिल्में | pictures  भी बन चुकी है जोकि सुपर हिट | superhit साबित हुई है। हमने पारो और देवदास | Paro and Devdas को भी  फिल्मों में देखा है तथा उनकी प्रेम कहानियां और उसके अंजाम को भी देखा है। 




आज मैं किस्से कहानियों की बजाए अपनी biography में जिंदगी में हुए सच्चे प्यार | Holi love को बताऊंगा, मोहब्बत की कसम यह वास्तव में ही एक निस्वार्थ, निशब्द और पूरी तरह से पवित्र प्यार था। 

इस प्यार में कभी भी प्रेमी और प्रेमिका की आपस में मुलाकात नहीं हुई और कभी भी कोई बात नहीं हुई, उसके बावजूद उन दोनों में अटूट, गहरा और पावन प्यार था। सालों तक मात्र दिन में कुछ सेकंड तक ही नजर से नजर दिन में एक बार मिलती थी, वह भी कई बार कई कई दिन तक नहीं मिल पाती थी। कभी ना मिलने और कभी बातचीत ना होने के बावजूद भी उनके प्यार को केवल वह दोनों ही समझ सकते थे। दुनिया में उन दोनों के अलावा किसी को भी इस मासूम और सच्चे प्यार का कभी भी पता नहीं चल पाया।


हां आज मैं दुनिया के सामने इस बिल्कुल सच्चे प्यार के बाबत बताऊंगा । mohabbat ki kasam यह 100% सच है और यह किसी और की नहीं बल्कि मेरी सच्ची प्रेम कहानी है | my true love story.

दोस्तों, 
          यह बात बहुत ही वर्षों पहले की है | many years ago जब मैं किशोरावस्था मे था। मैंने उस वर्ष हाई स्कूल पास किया था। हम लोग एक गांव में रहते थे तथा हमारा एक मध्यम वर्गीय परिवार था। हमारा गांव जंगल के किनारे बसा हुआ था। उस समय में, हाई स्कूल पास करके भी मां बाप चाहते थे की अपने बच्चे को कोई रोजगार करवा दिया जाए।

 हमारी यमुनानगर की सीमा से लगता हुआ जोकि हरियाणा में है, में एक प्लाट जिसमें एक छोटी सी दुकान थी और पीछे एक कमरा भी था, कुछ खुला एरिया भी था पूर्व में ही किसी समय हमारे पिताजी के द्वारा लिया हुआ था। वह जगह वर्तमान में हमारे गांव से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर थी।

एक दिन मेरे पिताजी द्वारा मुझे बताया गया कि कल हमने यमुनानगर जाना है और मुझे वहां पर अकेले रहकर ही दुकान करनी हैं, उस वक्त मेरी आयु लगभग 15 वर्ष थी तथा उससे पहले मैं कभी भी जीवन में अकेला घर से बाहर नहीं गया था। अगले दिन पिताजी मुझे साथ लेकर रात को ट्रेन से यमुनानगर के लिए निकल पड़े। अगले दिन सुबह हम यमुनानगर पहुंच गए, मैं उस जगह पर जीवन में पहली बार आया था तथा हर कोई मेरे लिए अजनबी था। कहीं ना कहीं मैं अंदर से घबरा भी रहा था कि मुझे अब अकेले यहां रहना पड़ेगा। पिताजी मुझे लेकर अपने प्लाट पर पहुंचे छोटी सी दुकान थी तथा पीछे एक मिट्टी की दीवारों से बना हुआ छोटा सा कमरा था। ना ही लाइट थी और ना ही पानी था, रात को मोमबत्ती जलाकर या लालटेन से लाइट मिलती थी। पानी दुकान से काफी दूर सरकारी टंकी से वाल्टी भरकर लाना पड़ता था। पिताजी 2 दिन वहां पर मेरे साथ रहे, इस दौरान उन्होंने एक नई साइकिल खरीद कर मुझे दी तथा उस वक्त कुल जमा पूंजी 1570/ ₹ का समान जोकि थोड़ा-थोड़ा करियाने का था,  को खरीद कर छोटी सी दुकान पर लगा दिया और मुझसे दुकान संभालने के लिए कह कर 2 दिन बाद ही वहां से चले गए।

मेरे लिए यह कच्ची उम्र में बहुत बड़ी विपत्ति से कम नहीं था। उससे पहले मैं कभी भी अकेला नहीं रहा था तथा मुझे ना खाना बनाना आता था और ना ही चाय बनाने आती थी। रो-रो कर जैसे तैसे खुद को ढांढस  बंधाकर मैंने जैसे तैसे करके खुद को संभाला और धीरे धीरे उस अजनबी माहौल में खुद को ढालने की कोशिश करने लगा। कई बार ठोकरे लगी, बहुत कुछ सहना पड़ा। जिंदगी में कई मुसीबतों के कड़वे डोज लेने पड़े, खुद ही हंसता, खुद ही रोता और खुद ही खुद को दिलासा देता। जिंदगी धीरे धीरे आगे सरकने लगी तथा कुछ दिनों बाद मैंने अपना आत्मबल पा लिया, तथा दुनिया में रहकर दुनिया से लड़ना आ गया। 


अब मैं सुबह 5:30 बजे से दुकान खोल कर रात्रि 11:00 बजे तक अपना कार्य करने लगा। धीरे धीरे कुछ दोस्त भी बन गए, जोकि मुझे सहारा देते तथा मुझे खुश रखने का प्रयास करते तथा मेरे सुख-दुख का भी सहारा बनते। समय बीतने के साथ मेरी मेहनत रंग लायी और मैंने दूकान से पैसे कमाकर कच्ची दूकान तोड़कर दोबारा पहले से बड़ी पक्की दूकान बनायी तथा बिजली का कनैक्शन तथा पानी का नल भी लगवा लिया 


Meri apni sacchi love story jise main kabhi bhi kisi ko Bata nahin Paya | मेरी अपनी सच्ची प्रेम कहानी जिसे मैं कभी भी किसी को बता नहीं पाया


अकेले जीवन काटना किसी आपदा से कम नहीं होता। बहुत मुसीबतें झेलते हुए मैं अपना समय व्यतीत कर रहा था।

 मगर अनायास ही मेरे वीरान जिंदगी में कुछ खुशी के पल आ गए और जिसने मेरी जिंदगी को बदल कर रख दिया। मेरे दुकान के सामने ही सड़क थी, जिससे बच्चे अपने स्कूल तथा कालेज साइकिल से जाया करते थे।

 उन बच्चों में दो लड़कियां भी प्रतिदिन अपनी साइकिल से स्कूल जाया करती थी। दोनों ही सहेली थी। उनमें से एक लड़की जिसका सही नाम तो मैंने आज तक जीवन में किसी को भी नहीं बताया मगर आप लोग समझने के लिए उसका नाम एस मान लो , भी थी।

 वह लड़की देखने में बहुत सिंपल थी मगर नेचुरल ब्यूटी की धनी थी।  लंबे उसके बाल थे जिसको वह चोटिया बनाकर रखती थीं।

 स्कूल जाते हुए जब मैंने उसको पहली बार देखा तो देखता ही रह गया। इतना पवित्र चेहरा और इतनी मासूमियत मैंने आज तक जीवन में किसी भी लड़की की के चेहरे पर नहीं देखी है। वह लड़की एस हमेशा ही अपनी नजर झुका कर मेरे दुकान के सामने से निकलती थी। उसकी एक झलक पाने के लिए सुबह के वक्त स्कूल जाने के समय बाहर कुर्सी डालकर बैठा रहता था। उसकी एक झलक पाकर ही मुझे ऐसा महसूस होता था कि जैसे मुझे सारे जहां की खुशी मिल गई। उसने कभी भी मुझे 2 सेकंड से ज्यादा नहीं देखा, मात्र एक बार कुछ पल के लिए ज्यादा से ज्यादा 2 सेकंड के लिए उसकी पलकें भी मुझे देखने के लिए उठती थी और  तुरंत ही उसकी नजरें झुक जाती थी, लेकिन वह चंद लम्हे मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत पल बन जाता था, कई वर्षों तक यह सिलसिला लगातार चलता रहा और उसने अपना ग्रेजुएशन भी पूरा कर लिया! 

हद तो यह थी कि मुझे उस लड़की का नाम भी पता नहीं था, कभी भी मुलाकात नहीं हुई, कभी भी कोई बात नहीं हुई , लेकिन वह लड़की भी जब 2 सेकड के लिए पलके उठा कर मुझे देखती थी तो उसके चेहरे की रंगत भी तुरंत ही बदल जाती थी तथा उसका चेहरा गुलाबी हो जाता था चाहत दोनों तरफ से थी बहुत ज्यादा थी, पवित्र  भावना से सच्चा प्यार था, लेकिन एक ऐसा प्यार जिसको कोई भी अपनी जुबान से कभी भी कह नहीं पाया! 

बाद में कुछ वर्षों तक उसका बड़ा भाई उसको अपने मोटरसाइकिल से कॉलेज छोड़ने तथा ले जाने लगा मगर हमारा वह देखने का सिलसिला हमेशा ही चलता रहा चलता ही रहा। दोनों ही मजबूर से थे, दोनों ही बेजुबान थे और दोनों की ही अपनी अपनी मजबूरियां थी।

कॉलेज की छुट्टियां पड़ गई और उसने कॉलेज जाना बंद कर दिया। मैं जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा। दिन प्रतिदिन ही मेरी हालत खराब होती चली गई ....।

 मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?

 हालात यहां तक पहुंच गए कि मैं दीवारों में अपना सिर टकराने लगा। मैंने सिगरेट पीनी शुरू कर दी और कुछ दिनों में ही मैं चैन स्मोकर बन गया। मगर मेरे हालात बद से बदतर होते चले गए।

7 जून 1993 का दिन था । उस दिन सोमवार था। मैंने उस दिन अपनेेे आराध्य भगवान भोलेनाथ का व्रत रखा हुआ था। मगर मैं मानसिक तौर पर बहुुत ही ज्यादा परेशान था। मुझे बड़ी शिद्दत से ही अपनेेे प्यार यानी कि एस की याद आ रही थी। शाम लगभग 5:00 बजे मेरी बेचैनी हद से ज्यादा बढ़ गई। मैं दुकान बंद कर पीछे अपने कमरेेे में गया गया और शिव जी भगवान की फोटो के सामने झुक कर अपना शीश नीचे किया और मन से भोलेनाथ से प्रार्थना की कि मुझेे आज मेरे प्यार से मिलवा दो। मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे। 5 मिनट प्रार्थना करते के बाद मैंं अपने कमरेे में ताला लगाकर बाहर निकल आया। ओर चमत्कार हो गया, मुझ पर प्रभु भोलेनाथ की असीम कृपा हो गई।  

मुझे सड़क पर चलते हुए 5 मिनट भी अभी नहीं हुए थे कि सामने मुझे सड़क किनारे अपनी जान मैडम एस आती हुई दिखाई दी। उसके साथ एक अन्य औरत भी थी। उस पल का वर्णन मैं चाह कर भी नहीं सुना सकता, ऐसा लगा जैसे मुझे आज ईश्वर ने नई जिंदगी दे दी हो। मन और मस्तिष्क को इतनी ठंडक और राहत मिली जितना कि एक इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता। 



Waqt ne ham donon premiyon ko hamesha ke liye alag kar Diya | वक्त ने हम दोनों प्रेमियों को हमेशा के लिए अलग कर दिया




मेरे शांत जीवन में फिर एक नया तूफान आने वाला था, जिसका मुझे हरगिज़ भी अंदेशा नहीं था।  ऐसा भी कह सकते हैं कि विनाश काले विपरीत बुद्धि। अच्छी खासी सही जिंदगी चल रही थी। मैं वहां यमुनानगर में काफी समय से अकेला था और मैंने यमुनानगर छोड़कर अपने गांव में आने का फैसला कर लिया और वहां की जमीन और दुकान को बेच दिया। जिसका मुझे आज भी  बहुत ही ज्यादा पछतावा हैै। अगर मैं ऐसा नहीं करता तो शायद मेरी जिंदगी कुछ और ही होती।

 ठीक-ठाक कारोबार था मेरा उस वक्त, मगर कुछ पीछे परिवार के हालात ऐसे थे कि मुझे वहां की जमीन बेचनी पड़ी। 

यमुनानगर की दुकान बेचने से कुछ दिन पहले ही मेरी जान मैडम एस के छोटे भाई का मेरी दुकान पर आना जाना शुरू हो गया था। मुझे पता चल गया था कि वह मेरी प्रेमिका का छोटा भाई हैै। लिहाजा मेरा उसके ऊपर अत्याधिक लगाव तथा प्यार आना स्वाभाविक था। आने के चंद दिन पहले ही वर्षों के बाद मुझे अपनी प्रेमिका का वास्तविक नाम पता चला। उसके भाई के दुकान पर आने पर मैं उसको अपने पास बिठाकर बहुत सारी बातें किया करता था तथा उसके परिवार में के बारे में पता करता रहता था। बातों ही बातों में उसने बताया कि उसकी बहन को गाने सुनना, पुराने गाने सुनना बहुत पसंद है। यह मेरी भी पसंद थी। 

यमुनानगर छोड़ने से पहले मैंने अपने उस दोस्त को बहुत सारी टेप रिकॉर्डर की कैसेट गिफ्ट में दिए, जिसमें से एक कैसेट लता मंगेशकर के गानों की भी थी। कैसेट के बाहर कवर पर गानों की लिस्ट बनी होती हैै, जिसमें वह गाने लिखे होते हैं जो उस कैसेट के अंदर होते हैं। उस कैसेट के अंदर अन्य गानों के अलावा 2 गाने मुख्य तौर पर थे। पहला गाना था जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं और दूसरा गाना था ना तुम बेवफा हो ना हम बेवफा हैं मगर क्या करें अपनी राहें जुदा है।



मैंने दोनों ही गानों पर पेन से टिक का निशान लगाया और एक छोटा सा दिल पेन से बना कर उसके अंदर एस लिखकर उसको दे दिया तथा उसके बाद मुश्किल से एक हफ्ते बाद ही मुझसे यमुनानगर हमेशा के लिए छूट गया। कह सकते हैं कि ......

लकीरों से चूक गए वरना इश्क हमारा कमाल का था।



हुई पहली मुलाकात और उसके हाथ का बना गाजर का हलवा खाने को मिला।


यमुनानगर छूट जाने पर मन काफी विचलित रहने लगा। कहीं पर भी मन नहीं लगता था। अंदर ही अंदर बहुत गहराई तक अपने दिल में एक तूफान से समेटे मैं खामोशी से अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहा था और कहीं ना कहीं घुट घट कर मर रहा था

 महीनो बाद मैंने एक दिन अचानक ही 1 दिन के लिए यमुनानगर जाने का फैसला कर लिया और मैं दूसरे दिन ट्रेन से यमुनानगर पहुंच गया। शाम के समय था, सर्दियों के दिन थे, मैं पूरी हिम्मत मन में मन में समेटे सीधा अपने प्यार, अपनी जिंदगी के घर में पहुंच गया।

 बहुत बड़ी हवेली थी क्योंकि वह लोग काफी संपन्न भी थे। उनकी खेती बाड़ी भी थी। मैंने दरवाजे का कुंडा खटखटाया तो उसकी मम्मी ने दरवाजा खोला। मैंने उनके पैर छुए तथा आदर से उनका अभिवादन किया तथा उनको बताया की मैं वहां से आया हूं तथा आपके बेटे से मिलने आया था। वह बहुत खुश हुई और मुझे घर के अंदर ले गई और बड़े ही प्यार से चारपाई पर बैठाया।

 घर पर ही मैडम एस  व उसका छोटा भाई भी मौजूद था, जिससे मेरा पूर्व में ही काफी मेलजोल हो गया था। मुुझे देख कर बहुत खुश हुआ। उसकी मम्मी ने मुझे पानी ला कर दिया, लगभग 10 मिनट से हम बातचीत कर रहे थे और मेरी प्यासी नजरें अत्यंत ही व्याकुल होकर अपने प्यार को तलाश कर रही थी। अचानक ही एक चमत्कार हो गया और ऐसा महसूस हुआ जैसे आज पूरा ब्रह्मांड अपनी जगह रुक गया हो। मेरी भी नजरें और सांसे जहां थी वहीं थम गई। कमरे का दरवाजा खुला ओर मेरी जिंदगी मैडम एस मेरे लिए गाजर के हलवे के प्लेट व चाय का कप लिए मेरे सामने खड़ी थी। वही खामोशी, वही झुकी नजर, वही मासूमियत और चेहरे पर डरी हुई और सहमी हुई वही अनजानी सी घबराहट। चंद सेकंड के लिए उसने नजरें उठाई और मेरी तरफ देखा, चेहरे पर उसके भी असीम प्यार और अपनापन और चाहत झलक रही थी। आंखों की आंखों से हुईं मुलाकात में हमने आपस में ना जानें कितनी ही बातें कर ली और कितने गिले-शिकवे भी कर लिए। 



उस गाजर के हलवे की मिठास व सुगंध तथा चाय का स्वाद आज भी मुझे बहुत याद आता है। 10-15 मिनट बैठने के बाद ही मैं उठ खड़ा हुआ और वापस आने के लिए उनका अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि  कि मैं रात को वहीं रुक जाऊं तथा खाना खाकर ही जाऊं, मगर अब मुझसे रुका नहीं जा रहा था और मैं उनको अलविदा कह कर वहां से आ गया। इस बात को वर्षों बीत गए हैं। मगर दिल में अब भी धड़कन उसी के नाम की होती है

बीते हुए वक्त के साथ मैंने दोबारा पढ़ाई शुरू कर दी थी तथा कई डिग्रियां हासिल की। जिंदगी में अनेक उतार-चढ़ाव देखने को मिले। मगर आज भी जब कभी अकेला बैठता हूं तो कहीं ना कहीं मुझे अपने उस सच्चे प्यार की याद तड़पा ही जाती है।

और अंत में बस इतना ही कहूंगा......

जिनका मिलना नहीं होता मोहब्बत में, उनसे मोहब्बत भी कसम से कमाल की होती है।
मोहब्बत की कसम.....

Jinka Milana nahin hota Mohabbat mein,
Unse Mohabbat bhi Kasam Se Kamal ki hoti hai.

(कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन)


👉 आज की यह पोस्ट मेरे दिल की धड़कन, 
मेरा सच्चा प्यार मैडम एस को समर्पित।

"बहुत संभाल कर खर्च करते हैं तेरी यादों की दौलत.....
"आखिर एक उम्र गुजारनी है अब इन्हीं की  बदौलत....।


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Hindi Dada: यह जंगल, यह नदियां, यह अंबर पुकारे | yah jungle yah nadiyan yah Ambar pukare

जंगल कराह रहे हैं, नदिया आहे भर रहे हैं और अंबर सिसक रहा है। 

यह जंगल यह नदिया यह अंबर पुकारे,
 हे मानव अपने कुकर्मों से हमें बचा रे। 

आज मानव के कुकर्मो तथा नासमझी तथा स्वार्थ पूर्वक रवैया अपनाने के कारण हालात बहुत ही ज्यादा खराब हो चुके हैं तथा खतरनाक स्टेज पर पहुंच चुके हैं। आज मानव की नादानियां इतनी बढ़ चुके हैं कि पूरी पृथ्वी | earth ही संकट में घिर चुकी है। पृथ्वी के ऊपर एक खतरनाक खतरा मंडरा रहा है। तथा उसके अस्तित्व पर ही खतरा आ चुका है। जाहिर सी बात है कि अगर bhumi पर संकट आया तो यह संकट सभी जीव जंतु, जंगलों, नदियों और मानव जाति पर भी अपना विनाशकारी प्रभाव दिखाएगा। 

आज का मानव अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए जाने अनजाने इस पृथ्वी का बहुत सा अहित भी कर रहा है। आज हालत यह हो चुके हैं कि भूमि में नदियों का जल भी दूषित हो चुका है, वायुमंडल में भी भारी मात्रा में प्रदूषण फैल चुका है तथा कल कारखानों से निकला हुआ जहरीला धुआं वातावरण में फैलकर समूची मानव जाति, पशु पक्षियों और जीव-जंतुओं के लिए अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है।  जिससे अंबर में भी स्थित ब्लैक होल, (जिससे हमारी पृथ्वी की जहरीली किरणों से रक्षा होती है) में सुराग हो चुका है, जिसके कारण ऊपर ब्रह्मांड से कई तरह की जहरीले किरणे निकलकर पृथ्वी के ऊपर आ रही हैं, जिसके कारण बहुत से नुकसान समुचित मानव जाति, पशु पक्षी, जीव जंतु को उठाने पढ़ रहे हैं।


जंगल कराह रहे हैं | jangal karaah rahe hain



आज का मानव अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को पूरा करने के लिए गैर जिम्मेदाराना रूप से जंगल को काट रहा है। उसके जंगल को काटने के कई कारण हैं।

 जैसे आज भी संसार में करोड़ों लोग चूल्हे पर  खाना बनाते हैं। चुल्हे को जलाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता पढ़ती है और लकड़ी की जरूरत पूरा करने के लिए मानव अंधाधुंध तरीके से जंगलों का कटान कर रहा है। इसके कारण भी पर्यावरण पर भारी विनाशकारी प्रभाव देखने को मिल रहा है और धरती | earth पर पर्यावरण असंतुलन पैदा हो गया है, क्योंकि पेड़ हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं तथा धरती से कार्बन डाई आक्साईड  सोखते हैं। अगर दुनिया में कम पेड़ होंगे तो सामान्य सी बात है की वह कम ऑक्सीजन छोड़ेंगे तथा कम ही कार्बन डाइऑक्साइड नामक जहरीली गैस को सोख पाएंगे। जिसका परिणाम यह निकलेगा की धरती से कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा हो जाएगी तथा ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाएगी जिससे मानव जाति के अस्तित्व पर ही खतरा दिखाई पड़ेगा।


नदिया आहें भर रही है | nadiyan aahe bhar rahi hain




पिछले लगभग 100 वर्षों से पूरी दुनिया में भारी तथा जबरदस्त औद्योगिकरण हुआ है। कुछ देशों में तो बहुत ही ज्यादा औद्योगिकरण हुआ है। जैसे. संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि। इस औद्योगिकरण का दुष्परिणाम भी सामने आया है। 

कल कारखानों द्वारा दूषित जल को शुद्ध ना करने के कारण उस जल को अक्सर नदियों में प्रवाहित कर दिया जाता है। कल कारखानों के दूषित पानी में अनेक जहरीले रसायनिक तत्व मौजूद होते हैं, जोकि नदियों के पानी में जाकर मिल जाते हैं। नदियों का जल लोग प्रायः पीने के लिए तथा कृषि के लिए इस्तेमाल करते हैं। दूषित पानी पीने से लोगों के स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ता है तथा उन्हें अनेक बीमारियां घेर लेती हैं। 

इसी प्रकार दूषित पानी को कृषि भूमि | agriculture land में इस्तेमाल करने से कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है तथा फसलों में भी उक्त विषैले तत्व आ जाते हैं जोकि अंत में मानव शरीर में तथा पशुओं के शरीर में अन्य तथा चारे के रूप में पहुंच जाते हैं जोकि नुकसान का कारण बनते हैं।

 इसके अलावा शहरों में सीवर की लाइनों का गंदा पानी भी नदियों में छोड़ा जाता है। आमतौर पर भारत में भी इस गंदे पानी के ट्रीटमेंट के साधन बहुत ही कम है तथा भारत की नदियां जबरदस्त तरीके से प्रदूषित हो चुकी है। भारत की प्रमुख नदियां गंगा और यमुना इसका ज्वलंत उदाहरण है। केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा अरबों रुपए नदियों की सफाई के लिए खर्च कर दिए मगर यह समस्या आज भी वैसे ही मुंह बाय खड़ी है तथा इसका कोई हल अभी तक दूर-दूर तक होता हुआ दिखाई नहीं पड़ता।


अंबर सिसक रहा है | Ambar sisak raha hai



विश्व मैं वर्तमान समय में जबरदस्त औद्योगिकरण हुआ है। नित्य प्रतिदिन प्रत्येक देश में कल कारखाने लग रहे हैं। उक्त कल  कारखानों द्वारा भारी मात्रा में जहरीला धुआं आसमान में छोड़ा जा रहा है जोकि हमारे आसमान पर छा गया है, इसके अतिरिक्त विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा खाना बनाने के लिए इंधन के रूप में लकड़िया जलाने के कारण भी पर्यावरण को भारी क्षति पहुंच रही है। 

दुनिया में करोड़ों वाहन भी है जोकि पेट्रोल तथा डीजल से चलते हैं, पेट्रोलियम पदार्थों की जलने के कारण भी जहरीला धुआं आसमान में इकट्ठा हो जाता है जोकि पूरे ही वायुमंडल को दूषित कर देता है। अनेक देशों में धान तथा गन्ने की फसल को उठाने के बाद धान की पराली तथा गन्ने की पतियों तथा खोई मे आग लगा दी जाती है, जिससे भारी मात्रा में धुआं वायुमंडल में इकट्ठा हो जाता है। लोगों को इससे स्वास्थ संबंधित बीमारियां भी हो जाती है।

 भारत में भी प्रातः हर साल हम पंजाब तथा हरियाणा से धान की पराली से लगी आग के धुएं को दिल्ली की तरफ आते हुए देखते हैं, जिससे दिल्ली में प्रदूषण का स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है तथा लोगों को सांस लेने संबंधी बीमारियां तथा दमे की बीमारियां आदी हो जाती है। इसके अतिरिक्त आसमान में व्यापक रूप से जहरीले धुएं के इकट्ठा होने से वर्षा के ऊपर भी इसका प्रभाव पड़ता है। तथा ओजोन की परत में छेद भी हो गया है जोकि दुनिया में मानव सभ्यता के लिए चिंता का कारण है। इस प्रकार हम देखते हैं की अंबर भी सिसक रहा है

मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा वह खेत में चारा चरती थी | meri bhains Ko danda kyon mara vah khet mein chara charti thi

गांव में रहने का अपना एक अलग ही आनंद होता है। गांव वाले अत्यंत ही भोले मासूम और खुशमिजाज होते हैं, उन्हें ज्यादा चालाकियां नहीं आती। आमतौर पर वह सीधी और सच्ची बात करना ही पसंद करते हैं। सादा रहन-सहन, सादी जिंदगी, सादा ही खानपान लेकिन उम्दा जीवन। ग्राम वासियों का जीवन अगर देखा जाए तो शहरों की तुलना में बहुत ही बेहतर होता है। मगर जो सुख सुविधाएं तथा ऐसो आराम के साधन शहरों में मौजूद हैं, वह गांव में नहीं मिलते हैं। 

वर्तमान समय में रोजगार की तलाश में गांव वाले भी शहरों की तरफ व्यापक स्तर पर पलायन कर रहे हैं, क्योंकि शहरों में उद्योग धंधे काफी मात्रा में मौजूद होते हैं जोकि आमतौर पर गांव में नहीं होते, इसके अतिरिक्त बच्चों की पढ़ाई के लिए उच्च कोटि के विद्यालय, इलाज के लिए अच्छे अस्पताल आदि सब बड़े शहरों में ही देखने को मिलते हैं। हर इंसान अपने बच्चों को अच्छे जिंदगी देना चाहता है। इसी ख्वाबों के साथ वर्तमान समय में ग्राम से शहर की तरफ व्यापक रूप से पलायन हो रहा है तथा शहरों में भी जनसंख्या के अत्यधिक दबाव के कारण दबाव बढ़ता जा रहा है।


मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा वह खेत में चारा चरती थी, तेरे ..... का वो क्या करती थी  |  Meri bhains Ko danda kyon mara, vah khet mein chara charati.  tere ..... ka vo kaya karti thi




आज मैं अपनी बायोग्राफी | Biography में एक सच्ची घटना को विस्तार से बताऊंगा।

journey of life | जीवन के सफर में, आज से बहुत वर्षों पहले की बात है जब मैं बच्चा हुआ करता था तथा हम लोग जंगल के किनारे बसे एक अत्यंत ही पिछड़े हुए गांव में  रहते थे। गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव था तथा घर में लाइट भी नहीं होती थी। हमने अपने पढ़ाई भी लालटेन की रोशनी में की थी। हमारे पास कुछ खेती की जमीन थी जिस पर खेती किया करते थे। गांव के लोग पशुपालन करते थे और भैंस पालन से कमाई भी होती थी। dairy farming business गांव में अच्छा फलता फूलता है। गांव में लगभग सभी के पास दुधारू पशु होते थे, murra bhains को ज्यादा दूध देने वाली भैंस माना जाता था। जिनका दूध परिवार में बड़े ही मन से सभी प्राणी पीते थे।

 मगर इस दूध को पीने के लिए बच्चों को बहुत ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ती थी। उन्हें पालतू गाय और भैंस को कई कई घंटे तक खेतों में घास को  चराने के लिए ले जाना पढ़ता था। हमारा भी हाल कुछ ऐसा ही था, स्कूल की छुट्टी के बाद घर में खाना खाने के बाद हमें भी अपनी भैंस को चराने की लिए खेतों में ले जाना पड़ता था। 

गांव में बच्चों ने अपनी सुविधा के लिए एक नया प्रयोग करना सीख लिया था, वह बच्चे आराम से भैंस के ऊपर बैठ जाते थे तथा भैंस आराम से घास चरती रहती थी। भैंस के ऊपर बैठने से बच्चों को इतनी खुशी मिलती थी जितना आजकल के बच्चों को हेलीकॉप्टर में बैठकर भी नहीं मिलती





सर्दियों का मौसम था। दिल्ली से मेरे मौसेरे भाई राजेश दुआ भी हमारे घर में गांव में कुछ दिनों केेे लिए आया हुआ था। वह मुझसे तीन चार साल बड़े थे। हम लोग आज भी उनको प्रेम से तथा इज्जत से वीर जी  कहकर बुलाते हैं। एक एक दिन मैं अपने स्कूल से पढ़ाई कर कर वापस आया तथा खाना  खाकर लगभग आधे घंटेेे तक आराम करने के बाद अपनी भैंस को खोल कर उसको घास चराने के लिए खेतों में ले गया तथा गांव के अन्य बच्चों के साथ ही मैं भी अपनी  भैंस पर बैठकर सवारी करने लगा। भैंस भी बिना किसी विरोध के आराम से घास को चर रही थी । बड़ा ही आनंद आ रहा था, लगभग समय 5:30 बजे का हो चुका थाा। सूर्य अस्त होने को तैयार था, मगर मैं भी अन्य बच्चों के साथ बेफिक्र होकर आराम से भैंस के ऊपर बैठकर सवारी कर रहा था।

 इतने में मेरा मौसेरा भाई जो कि दिल्ली से आया था मुझे ढूंढते हुए वहां पर आ पहुंचा। उसने यह अलौकिक नजारा पहली बार देखा था, हंसते हंसते उसकेे पेट में बल पड़ गए और मेरेे मौसेरे भाई राजेश दुआ के दिमाग में मस्ती के साथ एक शैतानी आईडिया भी आ गया उसने वही कहीं से पढ़ा हुआ एक डंडा उठाया और भैंस को मारना शुरू कर दियाा, परिणाम स्वरूप भैंस को थोड़ा गुस्सा आ गया क्योंकि यह उसके लिए भी एक अनचाहा अनुभव था।  भैंस बुरी तरह से बोखला गई और वह दौड़ने लगी। डर और बौखलाहट के मेरी घिग्घी बंध गई और मैं बेतहाशा  शोर मचाकर अपने भाई से यह सब करने को मना करने लगाा, मगर उसको यह सब करनेे में भरपूर आनंद आ रहा था। भैंस तेजी से भागने लगी और अंत में वही हुआ जिसका मुझे डर था। बैलेंस बिगड़ने के कारण मैंं भैंस की पीठ से जमीन पर धड़ाम से गिर पड़ा और सभी बच्चे ताालियां बजाकर हंसने लगे।

 आज भी वह घटना  याद करके मुझेे हंसी आ जाती हैैै।

और मैं अपने भाई से  आज यह फिर पूछना चाहूंगा की मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा वह खेत में चारा चरती थी।


: आज की यह पोस्ट अपने मौसेरे भाई श्री राजेश दुआ को समर्पित

प्रश्न: qurbani ka janwer कौन सा होता है?

उत्तर: bakra qurbani, bhains ki qurbani, ut ki qurbani आदि के बारे में अक्सर सुना जाता है। qurbani bakra भी सुना जाता है।

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जब हम जवां होंगे जाने कहां होंगे | jab ham Javan honge jaane Kahan honge

मेरे अपने विचार में इस संसार में बड़े से बड़ा ज्योतिषी भी किसी बच्चे के भविष्य के बारे में सौ परसेंट सही भविष्यवाणी नहीं कर सकता, और तो और किसी भी बच्चे को जन्म देने वाले माता-पिता को भी अपने बच्चे का भविष्य नहीं पता होता।




 किसी को नहीं पता होता उस बच्चे की कद काठी कैसे निकलेगी?

 उस बच्चे का चाल चलन कैसा होगा?

 उस बच्चे में बुद्धिमानी का स्तर कितना होगा?

 वह बच्चा कितनी पढ़ाई करेगा? 

वह बच्चा जीवन में कामयाब होगा या नहीं?

  कुल मिलाकर बात यह है की किसी भी बच्चे के बारे में उसके भविष्य के लिए पूर्ण रूप से सत्य  भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। बहुत कुछ बच्चे की परवरिश तथा घर के माहौल पर भी निर्भर करता है। कई बार अच्छे घरों के बच्चे भी पढ़ नहीं पाते चाहे उनके मां बाप कितने भी अच्छे विद्यालय में उनका एडमिशन ना करवा दें। वहीं इसके विपरीत कई बार अत्यंत ही गरीबी में पले पड़े  तथा अनपढ़ मां बाप के बच्चों को भी पढ़ाई में बहुत आगे जाते हुए देखा गया है।



 अभी हाल फिलहाल में कुछ ऐसे बच्चों को भी आई ए एस, पी सी एस, आई पी एस बनते हुए देखा गया जिन्होंने अत्यंत ही गरीबी का जीवन जिया था,  तथा जिनके माता पिता भी अनपढ़ थे।

जीवन में भाग्य का भी एक बहुत बड़ा रोल होता है। ऐसा भी देखा गया है कि कई बार निहायत बेवकूफ किस्म का व्यक्ति भी सिंहासन पर बैठ जाते हैं, जबकि उनसे  कहीं योग्य व्यक्ति उसी के दरबार में एक अदना सा सेवक बन कर रह जाता है। लेकिन भगवत गीता में भी एक बात बार-बार कही गई हैै की, इंसान को अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, कर्म अगर अच्छे होंगे तो भगवान भी देर सवेर इसका फल अवश्य ही प्रदान करेंगे। कर्म प्रधान है तथा हर इंसाान को अच्छे कर्म करनी चाहिए।



जीवन के सफर में हर व्यक्ति को ऊंचे सपनेे देखने चाहिए तथा देखे हुए हर सपनेे को पूरा करने के लिए हर समझदार व्यक्ति को अपना जी और जान लगाlदेना चहिए। कहावत है यह आपके अगर कर्म अच्छे होंगे तो ईश्वर भी देर सवेर आपको इसका फल अवश्य मिलेगा। 


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स्कूल में बिना गलती के हुई पिटाई का दर्द | The pain of getting beaten up at school for no fault of yours

बचपन नादान होता है, बच्चे चंचल होते हैं, उन्हें अच्छे बुरे का एहसास नहीं होता। 
 अगर बच्चों में चंचलता ही ना हो तो फिर वह बचपन कैसा? 
बचपन में हर बच्चे में थोड़ा नटखट पन होना भी जरूरी होता है। हर बच्चे में कुछ ना कुछ योग्यता अवश्य होती है, फर्क बस इतना होता है की कुछ बच्चों की योग्यता सामने आ जाती है और कुछ बच्चों की योग्यता छिप जाती है, कुछ बच्चों की इमेज ही उनके परिजन व दोस्त गलत बना देते हैं, जबकि वह बच्चा गलत नहीं होता। दुनिया में अलग अलग माहौल में अलग-अलग बचपन को देखा जा सकता है।


बचपन में दिल दुखने वाला अनुभव | heart breaking childhood experience


 मुझे भी आज भी अपना बचपन बहुत ही अच्छी तरह से याद है। पढ़ाई में मैं अपने बचपन से ही होशियार था। मुझे आज भी बहुत अच्छी तरह से वह दिन याद है जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था। उस समय में पांचवी के बोर्ड के पेपर होते थे। उस समय board ke exam के लिए एक सेंटर बनाया जाता था जिसमें आसपास के कई विद्यालयों के बच्चों का एग्जाम होता था।


 मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है की पांचवी की पढ़ाई में मैंने उक्त सेंटर में टॉप पोजीशन पाई थी । मेरी सफलता से मेरे हेड मास्टर बहुत ही प्रसन्न थे तथा मिलने पर हमेशा ही प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेर कर मेरा  हौसला बड़ाते थे। उनके द्वारा मुझे वजीफा भी दिलवाने का प्रयास किया गया था, मगर मैं क्योंकि जनरल कास्ट का छात्र था इसलिए मुझे वजीफा नहीं मिल पाया था। 

मेरा जन्म वैसे तो सहारनपुर में हुआ था मगर मेरी परवरिश तथा पढ़ाई एक अत्यंत ही पिछड़े गांव में हुई थी। हमारा गांव बहुत वीराने मैं जंगल के साथ लगता हुआ था। उन दिनों हमारे गांव में हमारे घर में बिजली भी नहीं होती थी तथा हमारी पढ़ाई लालटेन तथा चिमनी की रोशनी में होती थी। 

गांव में प्राइमरी तक का स्कूल था, इसके आगे की पढ़ाई के लिए हमें ढाई किलो मीटर पैदल चलकर जाना पड़ता था। ढाई किलो मीटर बाद जूनियर हाई स्कूल था। उन दिनों जब मैं पांचवी कक्षा पास करके घर से 2.5 किलोमीटर दूर नए स्कूल में छठी कक्षा में एडमिशन लिया। मेरी पढ़ाई में होशियारी इतनी थी की अध्यापक द्वारा मात्र बोर्ड पर लिखने से ही मुझे सब कुछ जुबानी याद हो जाता था तथा मुझे कॉपी पर भी लिखने की जरूरत नहीं पड़ती थी। मैथ के सवाल भी मुझे  जुबानी याद हो जाते थे। कक्षा में अध्यापक कोई भी सवाल पूछे तो मेरा हाथ सबसे पहले ऊपर उठता था।

जब मुझे अध्यापक द्वारा शाबाशी दी गई | when I was praised by the teacher




मुझे आज भी वह दिन याद है जब मैं छठी क्लास में पढ़ता था तथा पढ़ाई के दौरान मैं नल से पानी पीने गया था। पानी पीकर वापसी में जब मैं वापस आ रहा था तो रास्ते में कक्षा 8 की क्लास चल रही थी, उसी क्लास में अध्यापक ने मुझे बुलाया, तो मैंने कक्षा में अजीब नजारा देखा.... सभी बच्चों को उक्त अध्यापक द्वारा खड़ा किया गया था। मुझसे उन अध्यापक ने पूछा की क्या आपको पता है कि, 


भारत में सबसे ज्यादा वर्षा कहां पर होती है | where does it rain the most in India

 मैंने उत्तर दिया हां मुझे मालूम है। उन्होंने कहा तुम छठी क्लास के छात्र हो आठवीं क्लास है और इसमें से किसी भी बच्चे को इसका उत्तर नहीं पता लिहाजा इनको खड़े होने की सजा दी गई है। अगर तुम्हें पता है तो तुम बताओ।

 मेरे द्वारा बताया गया कि भारत में सबसे ज्यादा वर्षा चेरापूंजी में होती है, वह अध्यापक यह सुनकर बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे शाबाशी दी। जब मैं वहां से जब मैं अपने क्लास की तरफ जा रहा था तो मेरा सीना गर्व से फूला हुआ था।


जब मेरी स्कूल में बिना गलती के ही हुई पिटाई | when I got beaten up in school for no fault of my own


आज गुरु पूर्णिमा का दिन है। मुझे भी आज अपने स्कूल पर की सभी अध्यापकों की बहुत याद आ रही है । उन्हें की दी हुई शिक्षा का असर है कि आज मैं इस काबिल हूं की मेरे लिखे हुए यह ब्लॉग की पोस्ट दुनिया में लाखों व्यक्ति पढ़ रहे हैं। मैं उन सभी अध्यापकों को आज हृदय से नमन करता हूं। 

आज मुझे अपने छठी क्लास के उस अध्यापक की भी बहुत याद आ रही है जिन्होंने एक बार बिना किसी गलती के लिए मेरी जबरदस्त पिटाई कर दी थी।

 वाकया कुछ यह था कि जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं कि पढ़ाई में बचपन में मैं बहुत होशियार था तथा कक्षा में जवाब देने के लिए मेरा हाथ सबसे पहले ही ऊपर हो जाता था। एक दिन वह अध्यापक कक्षा में आए तथा उन्होंने ब्लैक बोर्ड पर लिखकर कुछ सवाल पूछा, हमेशा की तरह मेरा हाथ सबसे पहले ऊपर उठ गया। उन्होंने आव देखा न ताव तुरंत ही डंडे से मेरी पिटाई शुरू कर दी। अब 15:20 मिनट तक लगातार मुझे मारते रहे तथा अंत में हाफने लगे । लगभग आधे घंटे बाद कुछ नॉर्मल हुए तथा खड़ा कर कर मुझसे उस सवाल का जवाब पूछा। मैंने सिसकियां लेते लेते उनको जवाब दे दिया।


 मुझे आज तक यह समझ में नहीं आया कि उस दिन मेरी पिटाई क्यों हुई थी | I still do not understand why I was beaten up that day




 मगर अब बीते हुए वक्त के साथ मुझे यह एहसास हो रहा है कि शायद उस दिन उनका ब्लड प्रेशर अत्यंत ही ऊंचा था या वह किसी अन्य कारणों से परेशान रहे होंगे तथा किसी अन्य का गुस्सा गलती से मेरे ऊपर उतर गया। बाद में वह अध्यापक कई बार हमारे घर में भी आए तथा अक्सर चाय या लस्सी पीकर जाते थे। मुझे आज भी उनकी याद आती है।


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जब स्कूल टाइम में पिक्चर हॉल में छात्रों और अध्यापकों का हुआ आमना सामना।

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जीवन के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को | jivan ke safar mein rahi milte hain bichhad jaane ko

मानव जीवन अत्यंत ही अनमोल है। हिंदू धर्म के मुताबिक मानव को 84 लाख योनियों के बाद ही मानव शरीर प्राप्त होता है। इसे ईश्वरीय कृपा ही कह सकते हैं। अगर ध्यान से देखा जाए तो पूरा मानव जीवन ही एक फिल्म की तरह दिखाई पड़ता है, जिसमें मानव अपने ईश्वर के द्वारा निर्धारित कार्य करके पुनः ईश्वर के चरणों में समा जाता है। 

जीवन का सफर | Journey of life

मैं अपनी ही बात करता हूं, कभी बैठ कर एकांत में सोचता हूं, मात्र 15-20 मिनट में ही पूरा जीवन की मुख्य मुख्य घटनाएं आंखों के सामने एक पिक्चर की तरह ही घूम जाती है। वह दिन भी क्या दिन थे जब हम छोटे-छोटे बच्चे हुआ करते थे।

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 पल पल बच्चों से झगड़ना और कुछ पल के बाद ही  सब कुछ भूल कर फिर वही ठहाके तथा शरारते

 जब स्कूल में पढ़ाई के लिए दाखिला हुआ | Jab vidyalay mein padhaai ke liye hua admission

 कुछ बड़े हुए तो पिताजी ने स्कूल में पढ़ने के लिए एडमिशन करवा दिया। वह भी क्या दिन थे जब तख्तियां लेकर स्कूल में जाया करते थे तथा सलेटी या चाक द्वारा तख्ती पर लिखते थे।आजकल की नई पीड़ी तो तख्ती के बारे में जानती भी नही है 

 कुछ बड़े हुए तो फिर हाथों में कलम आ गई। क्या दिन थे, हर टीचर की जेब में एक चाकू भी हुआ करता था। उस समय के अध्यापक पढ़ाई के साथ साथ कलम बनाने में भी पूरे एक्सपर्ट हुआ करते थे।  कुछ वर्ष कलम से लिखने के बाद हाथों में इंक वाला पेन आया, पेन पाकर हम फूले नहीं समाए, ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे हमारा प्रमोशन हो गया हो।



 क्या वह दिन थे हमारे साथ पढ़ने वाले बच्चे, लड़कपन में खेलने वाले बच्चे ना जाने अब कहां चले गए। सब लोग बड़े होकर अपने अपने जीवन में  पापी पेट को भरने के लिए तथा परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए सभी लोग साथी बिछड़ गए

 आज वह जमाना याद कर आंखों में आंसू आ जाते हैं तथा यह गाना बरबस ही याद आ जाता है जिंदगी के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को।




किशोरावस्था से जवानी का आगाज

थोड़ेेेे बड़े हुए तो हाथोंं मेंं इंक पेन की जगह बॉल पेन आ गया। कॉलेज की मस्तियां तथा जवानी का आगाज
आहा क्या वक्त था? 

क्या दौर था? 

क्या जोश था? 

क्या सपने थे?

 ऐसा महसूस होता था की कर लो दुनिया मुट्ठी में । कॉलेज की पढ़ाई केेे बाद जब जिंदगी की हकीकत से वास्ता पड़ा तथा परिवार की जिम्मेदारियां गले पड़ गई तथा हंसतेे रोते हुए उन्हें निभाना पड़़ गया, तो ऐसा महसूस हुआ कि मानो जीवन के सतरंगी सपने स्वाहा हो गए हैंं। जीवन की सारी उमंग कहीं गुम हो गई।


वैवाहिक जीवन की शुरुआत 

 एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण सामाजिक  प्रथा यानी की विवाह के बंधन में बांधे गए। यह प्रथा भी एक ऐसी प्रथा हैै जोकि व्यक्ति को कई बार ना चाहते हुए भी परिवार के तथा समाज के दबाव में आकर सभी को स्वीकार करनी पड़ती हैं।




जब शादी हो गई तो जाहिर सी बात है की ईश्वर की कृपा से घर में बालक भी हुए। धीरे-धीरे बड़े हो रहे हैं, बच्चों को देखकर कहीं ना कहीं इंसान को अपना बचपन फिर से याद आ जाता है तथा इंसान कोशिश करता है की जो काम किसी वजह से वह अपने बचपन मैं नहीं कर पाया या जो मुकाम वह प्राप्त नहीं कर पाया, उसे उसके बच्चे प्राप्त करें। खाली दुनिया में पिता ही ऐसा  प्राणी होता है जो दिल से चाहता है कि मेरे बच्चे मुझसे भी बहुत ज्यादा तरक्की करें तथा आसमानों की बुलंदियों को छुए, इसके लिए एक बाप अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्योछावर कर देता है।


ढलती जवानी और बुढ़ापे का आगमन

 बुढ़ापे का आगाज बढ़ती हुई उम्र के साथ आना शुरू हो जाता है। धीरे धीरे शरीर को बीमारियां घेरना शुरू कर देती है। एक मजबूत व्यक्तित्व धीरे धीरे कमजोर होना शुरू हो जाता है और कई बार हालात ऐसे भी आ जाते हैं कि व्यक्ति बीमारी के कारण चारपाई पर पड़ जाता है तथा उसकी वही संताने ईश्वर से उसको अपने पास बुलाने की प्रार्थनाएं करने लगती हैं। यह वही संतान होती हैं  जिन्हें उसने ईश्वर से बड़े ही प्रार्थना करके प्राप्त क्या होता है।


दुनिया को अलविदा कह कर मृत्यु को प्राप्त होना

  एक दिन वह इंसान इस दुनिया को अलविदा कहकर किसी दूसरी दुनिया में ही चला जाता है।





 यही मानव चक्र है जहां पर हजारों लाखों लोग आपस में मिलते हैं, टकराते हैं, कुछ वक्त साथ चलते हैं और फिर अजनबी बन कर हमेशा हमेशा के लिए जुदा हो जाते हैं। और फिर यह बात सच महसूस होती है कि जिंदगी के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को और दे जाते हैं यादें कभी ना भूल जाने को। 


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